For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22 22 22 22 22 22 22 2
(बह्र ए मीर)

वो आएं मैं चहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है
उन्हें देख कर चमक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

तन पाटल चन्दन मन सुरभित वाणी ज्यों कचनार झरे
उनसे मिल कर महक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

गेंहुवन रंग लटें नागिन सी हृदय पे सीधे वार करें
फिर भी उनके निकट न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

सुर सरिता अधरों से बहती, इधर राग स्नेहिल पंछी
कोकिल स्वर संग कुहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

भाव भंगिमाओं का उत्तर, और किसी के पास नहीं
रूप अग्नि संग दहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

मौलिक अप्रकाशित

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:50pm
आदरणीय सौरभ सर इंगित दोषों को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करता हूं सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:33pm
आदरणीय भाई बृजेश जी बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:29pm
आदरणीय चयनित भाई सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:29pm
आदरणीय बाऊजी काफिया दोष जल्दी ही दूर करता हूं सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:29pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:28pm
आदरणीय आशुतोष सर इस बेहद ही खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका हृदय तल से आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:28pm
आदरणीय आशुतोष सर इस बेहद ही खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका हृदय तल से आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2017 at 11:33pm

फिर भी उनके निकट न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है = फिर ऐसे में बहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है 

सुर सरिता अधरों से बहती, इधर राग स्नेहिल पंछी .. इस मिसरे का दूसरा भाग अधूरा वाक्य हो कर रह गया है. इसे देख लेंं .. 

बधाई इस प्रयास केलिए 

शुभेच्छाएँ 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 12, 2017 at 9:43am
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई अदरणीय..हार्दिक बधाई
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2017 at 9:33pm
आदरणीय पंकज जी, बहुत अच्छी रचना हुई है। दूसरे शेर के सन्दर्भ में आदरणीय समर कबीर जी का कथन उचित है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service