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***लंबे तार***(लघुकथा)राहिला

घर से एक घंटे पहले निकलने के बावजूद आज फिर वह आधा घंटा देर से विद्यालय पंहुचा ।जबकि ऑटो स्टैंड से विद्यालय की दूरी मात्र पंद्रह मिनिट की थी । और जैसे ही उसने स्कूल में क़दम रखा,सामने कमिश्नर साहब को देख कर उसका हलक सूख गया ।
" घड़ी देखिये जरा..,क्या समय हो रहा है?ये आपके विद्यालय आने का समय है?"साहब के कहने अंदाज ऐसा था कि ग़ाज गिरी समझो।
"जी...जी!बस आज ही देर हो गयी।"उसने हकलाते हुए अपना बचाव करने की कोशिश की।
"झूठ बोलते हो ,सारे गाँव वालों ने शिकायत की है ।आप रोज ही देर से आते हो।"उन्होंने जैसे ही उसे लताड़ना शुरू किया। वह समझ गया कि,आज बात इन बातों से निपटने वाली नहीं ।खैर इसी में है कि जो सही बात है वही कह दी जाय।फिर जो भी हो।वह तुरंत हाथ जोड़ कर याचक की मुद्रा में आ गया।
"क्या करूं साहब जी!मुझे लगभग रोज इन पुलिस वालों की वजह से देरी हो जाती है।"
"क्या बकबास करते हो,पुलिस वालों को तुमसे क्या बैर ?"
वह ऐसी अटपटी बात सुन कर और भड़क उठे।
"साहब !यकीन माने ,मैं रोज समय से काफी पहले ऑटो में आकर बैठ जाता हूँ लेकिन जब तक ऑटो के तीनों तरफ और छत पर सवारियाँ नहीं लटक ,बैठ जातीं ड्राइवर टस से मस नहीं होता ।"
"तो....यार !कहाँ के तार कहाँ जोड़ रहे हो?वह अब और खीजे।
"तो क्या है ना साहब जी! ऐसे अतिरिक्त भार ले जा रहे ऑटो को जब पुलिस वाले कभी रोकते नहीं ,तो आपको बताया ना!,ऑटो वाला भी अतिरिक्त सवारियों के बगैर हिलता नहीं ।बस इसलिये मुझे रोज विद्यालय आने में देर हो जाती है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on February 16, 2017 at 8:02pm
बहुत,बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी!रचना की समीक्षा के लिए!यहाँ वक़्त का जिक्र केवल इस लिए किया ताकि इस बात पर रौशनी डाल सकूं की वक़्त से पहले नौकरी शुरू करने के बावजूद किस तरह एक बेकसूर सजा पाता है।सादर
Comment by Rahila on February 14, 2017 at 9:14pm
आदरनीय उस्मानी जी!आपका किसी भी रचना की समीक्षा का ढंग एकदम निराला है । आपकी टिप्पणी सदेव मार्गदर्शन का कार्य करती है।बहुत आभार रचना को समय देने के लिए। सादर
Comment by Rahila on February 14, 2017 at 9:10pm
आदरणीया राजेश दीदी! रचना को वक़्त देने और पसंद करने के लिए बहुत ,बहुत शुक्रिया। सादर
Comment by Rahila on February 14, 2017 at 9:08pm
प्रिय नीता दी!बहुत शुक्रिया रचना को वक़्त देने और पसंद करने के लिए। सादर
Comment by Rahila on February 14, 2017 at 9:03pm
आदरणीय आरिफ साहब !बहुत शुक्रिया रचना को वक़्त देने और पसंद करने के लिए। सादर
Comment by Rahila on February 14, 2017 at 9:02pm
आदरणीय विजय सर जी!रचना की समीक्षा हेतु समय देने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत,बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2017 at 6:53pm
अच्छे भाषा-शिल्प में एक साथ तीन-चार समस्याएँ बाख़ूबी उठाती बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय राहिला जी। शिक्षक की समस्या, ऑटो वाले की समस्या, सवारियों की व पुलिस-ऑटो-चालक-डील की समस्या !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 13, 2017 at 8:57pm

मैं भी नीता जी की बात से सहमत हूँ बहुत बढिया विषय पर लिखा है आपने बहुत शानदार लघु कथा हुई दिल से बधाई प्रिय राहिला जी 

Comment by Nita Kasar on February 13, 2017 at 8:07pm
बहाने तो कभी भी बनाये जा सकते है।पर हकीकत तो यही है।पुलिस और आटो वालों की सेटिंग सब जानते है ।बढ़िया कथा है आद० राहिला जी ।
Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:25pm
आदरणीया राहिला जी आदाब,सशक्त प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।

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