नज़्र ....
सहर हुई
तो ख़बर हुई
शब्
सिर्फ
बातों को
नज़्र हुई
रहते ख़ामोश
नज़रों को
जुबां देते
रात यूँ ही
नज़रों के
दरमियाँ गुज़ार देते
लम्स करते बयाँ
सफर निगाहों का
फिर
न सहर की
खबर होती
न शब्
लफ़्ज़ों को
नज़्र होती
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना के भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील भाई , खूबसूरत कविता हुई है , बधाइयाँ आपको
आदरणीय Mahendra Kumar साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय narendrasinh chauhan साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय Mohammed Arif साहिब प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेह देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब हमेशा की तरह आपके मधुर शब्दों ने मेरे सृजन का मान बढाया है। तहे दिल से आपके शुक्रिया सर।
सहर का ये तो लाभ है | सुंदर रचना | वाह
खूब सुन्दर रचना। .....
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