For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की : ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,

२१२२, ११२२, ११२२, २२

ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,
बस!! मुहब्बत में मुहब्बत भरी लज्ज़त न रही. 
.
रब्त टूटा था ज़माने से मेरा पहले-पहल,
रफ़्ता-रफ़्ता ये हुआ ख़ुद से भी निस्बत न रही.
.
ज़ह’न में कोई ख़याल और न दिल में हलचल,
ज़िन्दगी!! मुझ में तेरी कोई अलामत न रही.
.
उन से नज़रें जो मिलीं मुझ पे क़यामत टूटी,
वो क़यामत!! कि क़यामत भी क़यामत न रही.
.
याद गर कीजै मुझे, यूँ न मुसलसल कीजै, 
हिचकियां सहने की अब जिस्म को आदत न रही.

बस... बिला-वज़’ह उसे डांट दिया था मैंने,
“नूर” उस रोज़ इबादत भी इबादत न रही.
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2017 at 8:14pm
सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ....
आ. समर सर.. आपने बहुत ज़रूरी बात समझाई है..
लाख लाख धन्यवाद
Comment by Samar kabeer on February 21, 2017 at 7:36pm
जनाब नीलेश'नूर'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'रब्त टूटे थे ज़माने से मेरे पहले पहल'
इस मिसरे में 'रब्त'चूँकि एक वचन है,इसलिये इस मिसरे को यूँ कीजिये:-
"रब्त टुटा था ज़माने से मेरा पहले पहल"
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2017 at 6:40pm
आदरणीय नूर जी एक अरसे बाफ आपकी रचना के रसास्वादन का अवसर मिला बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Mohammed Arif on February 21, 2017 at 5:26pm
आदरणीय नीलेश जी आदाब, शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 21, 2017 at 4:36pm
आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन। मतले से मकते तक एक खूबसूरत गजल मिली पढ़ने को, वाह वाह क्या खूब कही आपने। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 21, 2017 at 3:17pm

//रब्त टूटे थे ज़माने से मेरे पहले-पहल, 
रफ़्ता-रफ़्ता ये हुआ ख़ुद से भी निस्बत न रही.
.
ज़ह’न में कोई ख़याल और न दिल में हलचल,
ज़िन्दगी!! मुझ में तेरी कोई अलामत न रही.//.....वाह क्या कहने आ. निलेश भाई ये दो अशआर खासतौर पर पसंद आए

दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमाएँ

Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2017 at 12:34pm

बहुत खूब आ. निलेश सर। बेहतरीन ग़ज़ल। वाह वाह।

हर शेर बहुत उम्दा हुआ है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service