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सांगोपांग सिंघावलोकन मनहरण घनाक्षरी .//अलका ललित

घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ  प्रथम प्रयास 

**

जाइए यहाँ से अभी
सरदी बहुत है जी
बादल आवारा सुनो
गर्मियों में आइए
.
आइए जो गरमी में
बरखा बहार संग
ठंडी सी हवाओं वाला
रस भी तो लाइए
.
लाइए जो बिजली तो
गरज गरज कर
कसक बरसने की
हमे न दिखाइए
.
खाइए न भाव अब
उचित समय पर
कृषकों की आस जरा
पूरी कर जाइए

**

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 10:51pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, प्रयास को समय देने व त्रुटियां  इंगित करने के लिए बहुत आभार आपका। घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ यह मेरा प्रथम प्रयास है, अभी बहुत अभ्यास की आवश्यकता है मुझे।    सुधार  का प्रयास किया है उम्मीद है अब सही होगा।  यदि फिर भी कोई त्रुटि हो तो कृपया निर्देश दीजियेगा ।  सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 10:48pm

आदरणीय Ashok Kumar Raktale ji, जी प्रयास को समय देने व त्रुटियां  इंगित करने के लिए बहुत आभार आपका। घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ यह मेरा प्रथम प्रयास है, अभी बहुत अभ्यास की आवश्यकता है मुझे।    सुधार  का प्रयास किया है उम्मीद है अब सही होगा।   सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 10:39pm

आदरणीय  Samar kabeer ji , मात्रिक छंद विधान न लिखने के कारण हुई असुविधा के लिए क्षमा चाहती हूँ ,सादर।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 10:36pm

आदरणीय Mohammed Arif ji , मात्रिक छंद विधान न लिखने के कारण हुई असुविधा के लिए क्षमा चाहती हूँ
घनाक्षरी का विधान:-
टोटल ४ पंक्तियाँ
हर पंक्ति ४ भागों / चरणों में विभाजित
पहले, दूसरे और तीसरे चरण में ८ वर्ण
चौथे चरण में ७ वर्ण, १६+१५ भी चलता है।
इस तरह हर पंक्ति में ३१ वर्ण

सिंहावलोकन का विधान:-
कवित्त के शुरू और अंत में समान शब्द
जैसे प्रस्तुत कवित्त शुरू होता है "जाइए " से और समाप्त भी होता है "जाइए " से

सांगोपांग विधान
छंद के अंदर भी हर पंक्ति जिस शब्द / शब्दों से समाप्त हो, अगली पंक्ति उसी शब्द / शब्दों से शुरू हो तो छंद की शोभा और बढ़ जाती है| इस विधान के छंन्द को सांगोपांग सिंहावलोकन छंद कहते थे|

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2017 at 7:36pm
आ0 अलका ललित जी घनाक्षरी जैसी कठिन विधा पर प्रथम प्रयास को देखते हुए रचना की बधाई।
दूसरे चरण में 15+15 वर्ण हैं 3 रे में 16+14 और चौथे में 17+15। मनहरण में 16+ 15 की बाँट अनिवार्य है।
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 3, 2017 at 7:31pm

आदरणीया अलका ललित जी सादर, मनहरण घनाक्षरी पर सुंदर प्रयास हुआ है.  यह आपका मनहरण घनाक्षरी पर प्रथम प्रयास है या सिंहावलोकन के साथ घनाक्षरी पर प्रथम प्रयास है मुझे नहीं पता. किन्तु यदि यह घनाक्षरी पर ही प्रथम प्रयास है तब आपने छंद के बन्धनों के साथ सिहावलोकन एक अतिरिक्त बंधन जोड़ लेने को मैं उचित नहीं मानता. क्योंकि छंद प्रवाह के लिए कलों के संयोजन पर भी कुछ काम करने की आवश्यकता है. सादर. 

आइए जो गर्मी में.......द्वितीय चरण में ७/८ वर्ण .एक वर्ण कम है.

जल्दी बरसने की......तृतीय चरण में ७/८ वर्ण . एक वर्ण कम है.

Comment by Samar kabeer on April 3, 2017 at 5:57pm
मोहतरमा अलका ललित जी आदाब,अच्छी छन्द रचना हुई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आप बार-बार भूल जाती हैं,रचना के साथ मात्राएँ या अरकान लिखना मंच का नियम है,इससे पाठक को रचना पर टिप्पणी देने में आसानी होती है,गिरह में बांध लें ।
Comment by Mohammed Arif on April 3, 2017 at 5:39pm
आदरणीया अलका ललित जी आदाब, बहुत सुंदर "सिंघावलोकन मनहरण घनाक्षरी"छंद । इस छंद का मात्रिक विधान भी बतला दिया होता तो बेहतर होता और ये छंद ज़रा सामयिक होते तो और मज़ा आता । ख़ैर, बहुत-बहुत बधाई ।

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