2122 2122 212
धारणायें हों मुखर, तो चुप रहें
सच न पाये जब डगर, तो चुप रहें
शब्द ज़िद्दी और अड़ियल जब लगें
और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप रहें
जब धरा भी दूर हो आकाश भी
आप लटके हों अधर, तो चुप रहें
कृष्ण हो जाये किशन, स्वीकार हो
शह्र पर जब हो समर तो चुप रहें
सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें
जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें
तेल औ’र पानी मिलाने के लिये
कोशिशें देखें अगर, तो चुप रहें
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( आ. पाठकों से एवँ आ. समर कबीर जी से अनुरोध है - चौथे शेर मे आये शब्द - समर = युद्ध लें )
मौलिक एवॅँ अप्रकाशित
Comment
आ. मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
बेहतरीन गज़ल आदरणीय गिरिराज भंडारी जी। हार्दिक बधाई।
आ० अनुज . आपने क्या जल्दबाजी में यह गजल डाल दी . देखिये –
और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप रहें------------2122 2112 2 212
आप लटके हों अधर, तो चुप रहें-------लटके हों अधर -----? हों अगर लटके अधर पर चुप रहे
शह्र पर जब हो समर चुप रहें ------------2122 2122 -12---?-----‘तो’ शब्द छूट गया .
सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें
जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें--------------बेहतरीन , मुबारकवाद
तेल औ’र पानी मिलाने के लिये-------- तेल औ पानी मिलाने के लिये--------
सादर,
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