For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब नज़र से उतर गया कोई

2122/1212/22
.
जब नज़र से उतर गया कोई,
यूँ लगा मुझ में मर गया कोई.
.
इल्म वालों की छाँव जब भी मिली
मेरे अंदर सँवर गया कोई.
.
उन के हाथों रची हिना का रँग
मेरी आँखों में भर गया कोई.
.
बेवफ़ाई!! ये लफ्ज़ ठीक नहीं,
यूँ कहें!!! बस, मुकर गया कोई.

मौत को “नूर” मौत क्यूँ मानें
मानिए ... अपने घर गया कोई.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 790

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 9:58pm

शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 8:59pm
आदरणीय नीलेश जी,वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् वाह्ह्ह्,सादर बधाई स्वीकारें!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 5:29pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर,
आप   की दाद से अभिभूत हूँ 
आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 19, 2017 at 12:04pm

आ० नीलेश जी आपकी ग़ज़लों का मैं क्यों प्रशंसक हूँ यह कहने की नहीं समझने की बात है. यह ग़ज़ल उसी समझ को पुख़्ता कर रही है. 

बाकी बातें तो होती ही रहती हैं. 

दिल से दाद कुबूल करें. 

शुभ-शुभ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 9:35am

आ. अनुराग जी,

आप का शुक्रिया अदा करता   हूँ कि आपने सूर्यभानु गुप्त जी से परिचय  करवाया.
उनकी ग़ज़लें पढ़ रहा हूँ और   रदीफ़ के जादू में सराबोर हो रहा हूँ ,,,
आप को धन्यवाद 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 11:49am

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र नाथ जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 11:49am

शुक्रिया आ. रोहित जी....
मुझे शिष्य ही रहने दें... गुरूजी  होने से दूरी ही भली 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 11:47am

शुक्रिया आ. बृजेश जी 

Comment by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:30am
आद0 निलेश'नूर'साहिब सादर अभिवादन,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 17, 2017 at 11:01pm

आह्.......दिल छू गयीं गुरूजी आपकी ये रचना सत्य प्रतीत होती हैं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service