समीक्षार्थ
मनहरण घनाक्षरी ....(एक प्रयास)
***
आशा का प्रकाश कर
बांस को तराश कर
बांसुरी के सुर संग
गीत बन जाइए
.
हौसले पकड़ कर
आँधियाँ पछाड़ कर
बहती नदी सी इक
रीत बन जाइए
.
मछली पे आँख रहे
धरती पे पाँव रहे
आसमान छू के जरा
जीत बन जाइए
.
बहुत जीया है इस
दुनिया की सोच कर
अब अपने भी जरा
मीत बन जाइए
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
((चार पदों के इस वर्णिक छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्णों की संख्या ३१ होती है.प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या क्रमशः ८, ८, ८, ७ की यति के अनुसार . तथा, पदान्त लघु-गुरु से हो. ))
Comment
आदरणीय Mohammed Arif ji ,नमस्कार , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर
आदरणीया अलका ललित जी सादर, पुनः सुंदर प्रयास हुआ है आपका घनाक्षरी छंद पर. फिरभी गेयता अभी बाधित हो रही है. प्रथम चरण की कहन भी त्रुटिपूर्ण है.
//मन न निराश कर// के साथ //गीत बन जाइए// नहीं कहा जा सकता. यदि इसमें मन को निराश कर की जगह //पीड़ा को बिसार कर//या ऐसा ही कुछ बदलाव कर लिया जाए तो कहन भी सुंदर हो जाएगी.
आँख मछली पे रहे
पांव धरती पे रहे
आसमान छू के जरा
जीत बन जाइए.......इस चरण में "आँख मछली पे रहे" या "पाँव धरती पे रहे" में आँख और पाँव दोनों एक त्रिकल हैं. गेयता अच्छी हो इसके लिए त्रिकल आने पर उसके आगे एक त्रिकल और रख दें ऐसी जानकारी छंद विधान में दी गई है. जबकि आपकी इस पंक्ति में त्रिकल के पश्चात चतुष्कल आ रहा है. इसे // मछली पे आँख रहे, धरती पे पाँव रहे,छू के आसमान ज़रा, जीत बन जाइए //इस तरह कर ले और फिर गेयता जांचें. सादर.
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