2122 2122 212
कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए
वो हमे भी ले गए पिन के लिए
चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे
आप अब भी रो रहे जिन के लिए
शेर को आता है बस करना शिकार
फूल जंगल में खिले किन के लिए
गुठलियों के दाम भी वो ले गया
उसने शीरीं आम जब गिन के लिये
आ गई अब ब्रेड में बीमारियाँ
जी रहे थे क्या इसी दिन के लिए
आये थे जापान से कल लौट कर
फिर उड़े वो रूस बर्लिन के लिए
पास पप्पू एक दिन हो जाएगा
है दुआ इस गैर मुमकिन के लिए
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश जी आपका गजल पसंद करने के लिये आभार
आदरणीय मित्रो ओ बी ओ के तरही मुशायरे संख्या 71 में ये गजल भी कही थी पर उस समय ये गजल पोस्ट नही हो सकी आज बस आपके लिये यहा पोस्ट कर दी ।इसके विषय उस समय के हिसाब से ही है उसी अनुसार इसे देंखें और अपनी राय दें । सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय आरिफ साहब गजल पसंद आई आपको
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