For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गर्व ....

रोक सको तो
रोक लो
अपने हाथों से
बहते लहू को
मुझे तुम
कोमल पौधा समझ
जड़ से उखाड़
फेंक देना चाहते थे
मेरे जिस्म के
काँटों में उलझ
तुमने स्वयं ही
अपने हाथ
लहू से रंग डाले
बदलते समय को
तुम नहीं पहचान पाए
शर्म आती है
तुम्हारे पुरुषत्व पर
वो अबला तो
कब की सबला
बन चुकी ही
जिसे कल का पुरुष
अपनी दासी
भोग्या का नाम देता था
देखो
तुम्हारे पुरुषत्व का दम्भ
लाल रंग में रंगा
क़तरा क़तरा
ज़मीं पर गिरकर
किसी को लज्जाहीन
करने की लज्जा से
धरा के गर्भ में
अपने वज़ूद से
शर्मसार हो रहा है
किसी के नारीत्व को
वस्त्रहीन करने से
तुम अपनी कायरता का ही
परिचय दोगे
कभी किसी को
उसकी इज्ज़त का
आँचल ओढ़ा कर देखो
सच
उस दिन
नारी को
तुम पर गर्व 
और तुम्हें
अपने पुरुषत्व पर
अभिमान होगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 7:02pm

आदरणीय  Mahendra Kumar  जी सृजन को अपने बहुमूल्य समय दे कर अपनी प्रशंसा से उसे शोभित करने का तहे दिल से शुक्रिया।  आप का ये नुक्ता हमें बहुत भाया। इस सुंदर सुझाव का हार्दिक आभार।  मैं इसे अभी एडिट कर इस सृजन की सुंदरता बढ़ाता हूँ। हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 6:59pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , प्रस्तुति को अपनी दिलकश प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से अलंकृत करने का दिल से शुक्रिया। आपके आने सृजन में जान आ जाती है। शर्मिंदगी की बात कहकर आप मुझे शर्मसार कर रहे हैं।  आपका दिल से आभार सर। 

Comment by Mahendra Kumar on May 4, 2017 at 7:48pm

आ० सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया कविता लिखी है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। प्रश्न की शक्ल में एक सुझाव : //तुम पर गर्व होता// क्या यहाँ "होता" को हटा देना बेहतर नहीं होगा? सादर।

 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2017 at 6:22pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,शर्मिंदा हूँ कि आपकी कविता पर हाज़िर होने में देर लगी,अहसास दिलाने का शुक्रिया,कभी कभी भूलवश ऐसा हो जाता है ।
बहुत सुंदर और वैचारिक कविता लिखी है आपने जो सोचने पर मजबूर करती है,बहुत ख़ूब वाह, इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on May 1, 2017 at 6:38pm

आदरणीय मो. आरिफ साहिब सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 1:55pm
आदरणीय सुशील जी आदाब, हमेशा की तरह यह रचना भी बड़ी प्रभावी है । सच है, नारी को तभी सम्मान मिलेगा जब उसे सशक्त बनाया जाएगा । ढेरों बधाईयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service