२१२२/११ २ २/२२ (११२)
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तेरे सदमे से उबर जाऊँगा,
न उबर पाया तो मर जाऊँगा.
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अपनी ही मौत का इल्ज़ाम हूँ मैं
क्यूँ किसी ग़ैर के सर जाऊँगा.
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मेरी बेटी! तू मुझे “भौ” कर के
जब डरायेगी तो डर जाऊँगा.
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बूँद रहमत की, फ़क़त एक ही बूँद
काश बरसे तो मैं तर जाऊँगा.
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आती सदियों की तलब की ख़ातिर
जाम कुछ “नूर” से भर जाऊँगा.
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निलेश "नूर"
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मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. मोहमम्द आरिफ़ साहब
वाह जी वाह ,, क्या ही शानदार ग़ज़ल है,, बेटी वाला शेर तो सीधे दिल में उतर गया है,,
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