कुण्डलियाँ छंद पर प्रथम प्रयास
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बोझ बढ़ा आवाम पर मगर न आई लाज
लगी लेखनी को अजब भक्तिभाव की खाज.
भक्तिभाव की खाज जो आधी रात जगाये
अपनी बरबादी का ज्ञानी जश्न मनाये.
व्यापारी का देश में बुरा हुआ है हाल
मौजी निकला घूमने.. देश करे हड़ताल.
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अठरह फी से दिक्कत थी अट्ठाईस से प्यार
बड़े ग़ज़ब के तर्क हैं बड़े ग़ज़ब सरकार.
बड़े ग़ज़ब सरकार लगे जी एस टी प्यारा
भक्ति करेंगे और बनेंगे हम ध्रुव तारा.
पूजन सामग्री औ बस्ता टैक्स नेट में आया
माँस हुआ करमुक्त जो सबने दाब के खाया.
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आतंकी अल-क़ायदा किया बहुत उत्पात
लेकिन अब अल-गाय दा छाया रातों रात
छाया रातों रात मुल्क की शान घटी है
सिले हुए हैं लब, तुम्हारी ज़बां कटी है.
कहे नूर कविराय हटाओ गौरक्षक को
प्रेमभाव के और तरक्की के भक्षक को.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. सौरभ सर,
विधान की कमियाँ इंगित करेंगे तो जल्दी सीख पाउँगा
सादर
प्रयास ने मुग्ध किया है. अलबत्ता भाव प्रस्तुतीकरण की उत्कट अपेक्षा ने प्रयुक्त छंद के विधान से कितनी सहजता से वंचित रखा कि रचनाकार को इसका भान भी न रहा. किन्तु, पूर्ण विश्वास है, ग़ज़ल विधा के बहुमुखी जानकार विधाओं के विधान और इनकी महत्ता को अवश्य समझेंगे.
आदरणीय नीलेश भाई, सतत प्रयासरत रहें.
शुभ-शुभ
धन्यवाद सभी का
बड़े ग़ज़ब सरकार लगे जी एस टी प्यारा
भक्ति करेंगे और बनेंगे हम ध्रुव तारा...वाह आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी , आपकी गज़लें तो खूब पढ़ीं हैं , पहली बार आपके इस रचना पक्ष का भी भान हुआ , बधाई ! सादर
अरे वाह ग़ज़लकार छंद पर प्रयास कर रहे हैं यह ओबीओ पर ही देखने को मिलता है | वाह आदरणीय सुंदर प्रयास हुआ है | हार्दिक बधाई |
खूब सुन्दर रचना
आ. निलेश जी, छंद के विषय में कुछ कह पाने की स्थिति में तो मैं नहीं लेकिन इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि इसका भाव पक्ष ज़बरदस्त है. बहुत सीधी और सटीक चोट की है आपने. मेरी तरफ़ से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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