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गजल(अक्ल के मारे हुए हैं..)

2122 2122
अक्ल के मारे हुए हैं
हम सभी हारे हुए हैं।1

आज मसले बेवजह के
देखिये नारे हुए हैं।2

जो नहीं थोड़ा सुहाये,
आँख के तारे हुए हैं।3

लूटते हैं जिस्म-ईमां
जान हम वारे हुए हैं।4

दान कर दीं कश्तियाँ भी
आज बेचारे हुए हैं।5

कान देते, बात बनती
वे उबल पारे हुए हैं।6

बाग भर मैं देख आया,
तिक्त फल सारे हुए हैं।7

सब लिये हैं गीत अपने
भाव को टारे हुए हैं।8

हंस ढूँढ़े, मिल गये क्या?
मौन मन मारे हुए हैं।9
@'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment by Manan Kumar singh on June 5, 2017 at 7:41pm
आदरणीय महेंद्र जी,मेरा लघु प्रयास आपको भा गया,यह मेरे लिए प्रेरणाकारक है।आपका हार्दिक आभार,सादर।
Comment by Mahendra Kumar on June 5, 2017 at 7:38pm

अक्ल के मारे हुए हैं
हम सभी हारे हुए हैं। ...वाह!

छोटी बह्र में बढ़िया अशआर कहे हैं आपने आ. मनन जी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2017 at 4:31pm
आभार आपका आदरणीय।
Comment by vijay nikore on June 3, 2017 at 3:24pm

अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2017 at 1:31pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी,हौसला आफजाई के लिए।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 3, 2017 at 1:15pm
Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2017 at 11:32am
आभार आदरणीय बृज जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 3, 2017 at 10:04am
बहुत खूब बहुतखूब आदरणीय..सुन्दर सारगर्भित ग़ज़ल..
Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2017 at 8:29am
आदरणीय आरिफ जी,आभार आपका।
Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2017 at 8:28am
आभार आदरणीय कल्पना जी।

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