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पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर, ईद मुबारक़
पास आए मेरे और जो ’आदाब’ सुना मैं
मेरे लिए अब आठों पहर ईद मुबारक़
हर वक़्त निग़ाहें टिकी रहती हैं उसी दर
पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़ !
जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़’ !
इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?
जब धान उगा कर मिले सल्फ़ास की पुड़िया
समझो अभी रमज़ान है, पर ईद मुबारक़ !
भइ, आप हैं मालिक तो कहाँ आपसे तुलना
कह उठती है रह-रह के कमर.. ईद मुबारक़ !
तू ढीठ है बहका हुआ, मालूम है, लेकिन
सुन प्यार से.. बकवास न कर.. ’ईद मुबारक़’ !
जो बीत गयी रात थी, ’सौरभ’ उठो फिर से
कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक
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-सौरभ
Comment
भाई पंकज जी आपसे मिली प्रशंसा का मैं तहेदिल से स्वागत करता हूँ. ये मेरे लेखन को और भावमय करेगी. हार्दिक धन्यवाद, भाई.
अदरणीय बसंत शर्माजी, आपकी सदाशयता से पूरी तरफ़ से वाकिफ़ हैं और जबलपुर की वो शाम तो बार-बार मस्तिष्क में कौंध जाती है, जब आप और समस्त सुधीजनों के सान्निध्य में हम भाव विभोर हुए थे. इस प्रस्तुति को भाव दे कर आपने जिस तरह से मेरा उत्साहवर्द्धन किया है, उस हेतु आभार.
सादर
भाई रामबली जी, आपसे मिला अनुमोदन वाकई ऊर्जस्वी रखता है. हार्दिक धन्यवाद ..
पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर, ईद मुबारक़.......मत्ला ही मारक क्षमता से परिपूर्ण है
इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?.........Dy SP की मौत भी एक सवाल है
वाह मुग्ध हूँ, आपकी ग़ज़ल पढ़कर, लाजबाब से भी लाजबाब, बहुत बहुत बधाई आपको. ईद मुबारक
वाह वाह सर कितनी सहजता से बह्र में भी अपनी बात को कह लेते है आप। बहुत शानदार। बहुत खूब बधाई आपको।
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