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कुण्डलिया छंद - (जी एस टी पर)

1-
आया है जी एस टी, ऐसा एक विधान।
सुगम रहेगा टैक्स यह, मिटे सभी व्यवधान।।
मिटे सभी व्यवधान, प्रणाली सरल रहेगी।
फैलेगा व्यापार, चैन की गंग बहेगी।।
कर की दरें समान, हटा जाँचों का साया।
भारत भर में आज, एक ऐसा कर आया।।
2-
सारी जनता खुश हुई, जागी आधी रात।
लगता है जी एस टी, बदलेगा हालात।।
बदलेगा हालात, यही कहकर भरमाया।
ऐसे खुश हैं लोग, लगा जैसे कुछ पाया।।
बना दिया माहौल, प्रचारित करके भारी।
देना होगा टैक्स, मगर खुश जनता सारी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2017 at 5:13pm

मौलिक और अप्रकाशित लिखना आवश्यक है नियमों के तहत. 
सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on July 6, 2017 at 11:12pm
यदि शिल्प गेयता प्रवाह और अंतर्निहित भावों के सम्प्रेषणीयता की बात करें तो आद0 भाई हरिओम जी आपकी दोनों कुण्डलियाँ बहुत ही सुंदर तथा सफल हुई हैं और अव्वल इसके लिए आप बधाई स्वीकार करें। अब आतें हैं विषय पर इस संदर्भ में मै आदरणीय भाई समर कबीर साहब से थोड़ा भिन्न मत रखता हूँ। मेरा मानना है कि एक कवि को देश और समाज में घटित होने वाले हर सामयिक विषय पर कलम चलानी चाहिए और उसे सबके सम्मुख भी रखा जाना चाहिए चाहें वो कोई साहित्यिक मंच ही क्यों न हों। पढ़ने वाले अनेक विचारधारा के हो सकते हैं और बहुत हद तक संभव भी है कि कुछ लोग रचना में कही कई बातों से सहमत न हों। ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे उक्त रचनाकार की रचना में शिल्प, कथ्य, प्रवाह आदि की बात करें और उस पर अपने सुझाव दें। साथ ही देखें कि रचनाकार जो बात अपनी रचना में कहना चाहता है उसमें कहाँ तक सफल हुआ है और इस बाबत अपनी राय दें सुझाव दें न कि अपने व्यक्तिगत आग्रहों की असहमति जता कर किसी साहित्यिक मंच को सियासत का प्लेटफॉर्म बना दें। उदाहरण के तौर पर लीजिये मै स्वयं जी एस टी के बहुत से प्रावधानों से सहमत नही हूँ फिर भी मै रचना में शिल्प, प्रवाह और निहित भावों की सफल सम्प्रेषणीयता के लिए भाई हरिओम श्रीवास्तव जी को साधूवाद देता हूँ। यहाँ अपने व्यक्तिगत आग्रहों को रचनाकारों पर थोपना हमारा काम नहीं।सादर
Comment by Samar kabeer on July 3, 2017 at 6:44pm
आपकी बात बिल्कुल सही है कि एक कवि का यही धर्म है कि वो देश के हालात पर क़लम चलाये,लेकिन आप ये भी जानते हैं कि जी ऐस टी के बारे में कुछ लोग इसे पसन्द नहीं कर रहे हैं और इस के लिये मुल्क में कई जगह आंदोलन भी हुए,ऐसी हालत में जब आप इसकी तारीफ़ में लिखेंगे तो वो कवि जो इसे पसन्द नहीं करते वो आपकी बात काटेंगे,और फिर अंजाम ये होगा कि चर्चा साहित्य पर न होकर सियासत की तरफ़ मुड़ जायेगी,और नतीजा वही होगा कि एक बेकार बहस में पड़ कर हमारे मंच का माहौल ख़राब होगा,मिसाल के तौर पर ओबीओ चैप्टर भोपाल के वॉट्सऐप ग्रुप में जब मोहतरमा सीमा शर्मा जी ने जीएसटी की तारीफ़ में पोस्ट डाली तो वो विवाद इतना बढ़ा कि जनाब सौरभ पाण्डेय जी ग्रुप छोड़कर चले गए,उसके बाद सीमा जी और हरी शर्मा जी भी भी ग्रुप छोड़कर चले गए,फिर बड़ी मुश्किल से उन्हें वापस लाया गया,ऐसे हालात में आप ख़ुद सोचिये की यहाँ भी ऐसे हालात से बचने के लिए ही ये नियम बनाया गया है कि मंच पर ऐसी चर्चा न हो,क्योंकि सबका मिज़ाज एक जैसा नहीं होता,कोई इसे पसन्द करेगा तो कोई ना पसन्द करेगा ।
इसलिये एक कवि और शाइर को अपनी क़लम सतर्कता से उठाने की ज़रूरत होती है,अब देखिये कि देश में गो रक्षा के नाम पर क्या क्या हो रहा है,अब अगर कोई इस पर क्लन चलाएगा तो नतीजा क्या होगा आप अच्छी तरह समझ सकते हैं,उम्मीद है आप मेरे कहे का अर्थ समझ गए होंगे ?
Comment by Hariom Shrivastava on July 3, 2017 at 6:10pm
हार्दिक आभार आदरणीय Samar Kabeer जी। आपका कहना सही है। ये साहित्यिक मंच है, यहाँ राजनीति से संबंधित रचनाएं नहीं होनी चाहिए। किंतु ये रचना राजनैतिक कैसे कही जाएगी। जी एस विषय है,एक ऐसा विषय जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में बदलाव लाएगा। हम भारत के नागरिक हैं और ये कवि धर्म है कि देश में जो हो रहा है, उस पर लिखें। कवि होने का मतलब ये तो नहीं कि हम देश में हो रही घटनाओं से आँखे ही मूँद लें। इसमें न किसी की आलोचना है न किसी दल की प्रशंसा है। हम इस बात से इंकार भी नहीं कर सकते कि देश में जी एस टी आ गया है। मेरा निजी मत..खैर आपने रचना पर उपस्थित होकर मान बढाया, पुनः आभार।
Comment by Samar kabeer on July 3, 2017 at 3:19pm
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,मुल्क में चल रहे विवादित मुद्दे पर कुण्डलिया छन्द पर कुछ कहने से बात साहित्य से हट कर सियासी हो सकती है,इसलिये इस पर कुछ कहने में असमर्थ हूँ,क्योंकि ये मंच पूरी तरह साहित्यिक है ।

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