तिरंगे की लाज के लिए ....
न
मैं अब तुम्हें
मुड़ के न देखूँगा
अपने बढ़े कदम
विछोह के डर से
न रोकूंगा
जानता हूँ
कितना मुशिकल है
अपनी प्रीत को
दूर जाते हुए देखना
कतरा कतरा
अपने प्यार को
बिखरते हुए देखना
अपने सपनों को
अनजानी भोर की
बलि चढ़ते हुए देखना
पंखुड़ी की जगह
ओस को शूलों पर
सोते देखना
कितनी आँखों से तुम
अपने बहते दर्द को छुपाओगी
न
सब कुछ जानते हुए भी
मैं न रुक पाऊँगा
अपने दामन से
तेरी गीली आँखें
न पौंछ पाऊँगा
दूर तक जाते रास्तों पर
मेरे कदमों की आवाजों पर
जाने कितनी सांसें की
डोर बंधी है
देख
तेरी सिसकियों की आवाजें
कहीं मुझे
कमजोर न कर दें
तेरे सिन्दूर को
तेरा प्यार
शर्मसार न कर दे
मेरी माटी को
मेरी वर्दी पे नाज है
मेरी वर्दी पे विशवास है
अनगिनित आँखों का
मैं कर्जदार हूँ
न
मैं अपने घरोंदे की खातिर
लाखों घरोंदों से
विश्वासघात नहीं कर पाऊंगा
तेरी मेहंदी के गर्व को
चकनाचूर न कर पाऊंगा
जाने दे,
मुझे सीमा पर जाने दे
अपनी ख़ामोश आवाज़ों की बेड़ियाँ
मेरे विशवास के पांवों में मत डाल
इस तिरंगे की लाज के लिए
मुझे
जाने दे
हाँ प्रिय,
मुझे
जाने दे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन को अपने आशीर्वाद से मान देने का शुक्रिया।
आदरणीय सुरेन्दर नाथ सिंह जी सृजन को अपने स्नेहिल शब्दों से उत्साहित करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।
जय हिन्द की सेना ... बहुत खूब , आदरनीय देश प्रेम की भावना से पगी आपकी कविता के लिये बधाइयाँ ।
नमन नमन नमन आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब ... आपकी पारखी नज़र को सलाम .... वास्तव ये जल्दबाज़ी का नतीजा है ... इतनी त्रुटियों की तो मुझे भी शर्मिंदगी है। इंगित त्रुटियों को मैंने आपके कहे अनुसार संशोधित कर दिया है। सृजन को आपने अपना अमूल्य समय देकर उसके भावों और शिल्प को निखारा। ... आपका तहे दिल से शुक्रिया।
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