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जरा जी कर देखें ...

चलो
जिन्दगी को
ज़रा करीब से देखें
दर्द को ज़रा
महसूस करके देखें
क्या खबर
कोई लम्हा
अपना सा मिल जाए कहीं
चलो
उस लम्हे को
जरा जी कर देखें//

जिन चेहरों पे हंसी
बाद मुद्दत के आई है
जिन आँखों में
अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है
जिस आंगन में
धूप अब भी
सहमी सहमी आती है
उस आंगन के
प्यासे रिश्तों से
जरा रूबरू होकर देखें
चलो!
जिन्दगी को
जरा जी कर देखें//

हमारे अहसास
किसी रिश्ते के
मुहताज तो न थे
दिल के जज़्बात
धड़कनों से
अनजान तो न थे
फिर क्यूँ
सफ़र
नज़र से नज़र का
अधूरा सा लगता है
आज भी
क्यूँ
तेरे चेहरे पे
मेरा नाम
खुदा सा लगता है
चलो
वक्त के पन्ने
फिर कभी पलट के देखेंगे
आँखों के दर्पण में
अपना अपना
समर्पण देखेंगे
मुड़ के देखें
या न देखें
पर
तू जैसी भी है
चल तुझे
ऐ ज़िंदगी !
जरा जी कर देखें//

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 13, 2017 at 3:51pm

आदरणीय   Mahendra Kumar जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 7:20pm

बढ़िया अतुकांत कविता है आ. सुशील सरना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:18pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। .. सृजन को अपनी शीरीं अल्फ़ाज़ों से मान देने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटियों को संशोधित कर मैं रचना को पुनः प्रेषित कर रहा हूँ। आपके अमूल्य सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:18pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब प्रस्तुति को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से प्रशंसित करने का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:17pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन को अपने स्नेहिल शब्दों से शोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:17pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 3:16pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, बहुत उम्दा,हमेशा की तरह एक बहतरीन कविता से नवाज़ा है आपने मंच को,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
17वीं पंक्ति में 'धूप भी अब भी'को "धूप अब भी" कर लें ।
27वीं पंक्ति में 'मोहताज' को "मुहताज" कर लें ।
Comment by Mohammed Arif on July 10, 2017 at 7:58am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, भावों की बगिया फिर से महक उठी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2017 at 5:45am
आ. भाई सुशील जी अच्छी भावपूर्ण रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 5:23am
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हर् बार की तरह पुनः एक बेहद उम्दा और विचारणीय रचना, बधाई आपको। आपकी लेखनी को नमन।

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