“डॉक्टर साहब, देखिये ना मेरी फूल सी बिटिया को क्या हो गया है, कुछ दिनों से ये अचानक दौड़ते-भागते हुए गिर जाती है, ठीक से सीढ़ियाँ भी नहीं चढ़ पाती है।“
“अरे आप इतना क्यों घबरा रहें है? लीजिये कुछ टेस्ट लिख दियें हैं, बच्ची की जाँच करवा के मुझे दिखाइये ।“-डॉक्टर ने कहा।
अगले ही दिन बृजमोहन सारी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर मिश्रा के अस्पताल पहुँच गया।
डॉक्टर मिश्रा जैसे –जैसे रिपोर्ट पढ़ते जा रहे थे वैसे –वैसे ही उनके माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जा रहीं थी, और बच्ची की ख़ून की जांच रिपोर्ट देखते ही उनके माथे से पसीना चूने लगा। यह देख कर बृजमोहन का तो माने ख़ून ही सूख गया हो, उसने अपनी लड़खड़ाई जुबान से डॉक्टर मिश्रा से पूछा ,“क्या हुआ मेरी बच्ची को डॉक्टर साहब, सब ठीक तो है न।“
देखिये बृजमोहन जी, आपसे कुछ नहीं छुपाऊँगा मगर मैं खुद हैरान हूँ की इतनी प्यारी बच्ची को मात्र पाँच साल में ‘मस्कुलरडिस्ट्रॉफी’ रोग कैसे हो गया और सबसे बड़ी बात तो ये की यह रोग सामान्यत: लड़कों में ही पाया जाता है।
इतना सुनते ही बृजमोहन की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, वह समझ ही नहीं पा रहा था कि हुआ क्या है?
बृजमोहन की मनोदशा को भाँपकर डॉक्टर मिश्रा ने उसे सरल भाषा में समझाया और कहा ! “देखिये बृजमोहन जी यह रोग मांसपेशियों की विकृति के रूप में सामने आता है । इस बीमारी में मरीज की मांसपेशियां बेकार हो जाती हैं जबकि उसका मस्तिष्क आम आदमी की तरह काम करता रहता है। यह बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है। अधिकांशतः बच्चे 7 से 8 साल बाद ही चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं और 20 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते सांस लेने के लिए उन्हें श्वास यंत्र की आवश्यकता पड़ जाती है।हालांकि मैं इस केस को न्यूरोलॉजिस्ट को रेफेर कर रहा हूँ बाकी आपको वही समझा देंगे।“
बृजमोहन बिना कुछ बोले डॉक्टर मिश्रा को हाथ जोड़कर चल दिया , न्यूरोलॉजिस्ट से मिला दवाईयां लेकर चल दिया उसने रास्ते में एक नर्सरी से एक पीपल का पौधा लिया और घर पहूंचकर अपनी बिटिया से उसी शिवलिंग के पास बड़े प्यार से रोपित करवा दिया, जिससे उसने बड़ी मिन्नतों से एक बिटिया मांगी थी।
अब हर साल वो पीपल को बढ़ता देखता है और बिटिया को घटता...वो समझ चुका था, किसी के अंत का आरम्भ है ये।
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ० दुबे जी . बड़ी करुण कथा है और आपकी प्रस्तुति से जानदार हो गयी है , बधाई
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