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मेरी आबाद मुहब्बत को मिटाने वाले

2122 1122 1122 22
मेरी आबाद मुहब्बत को मिटाने वाले ।
तू सलामत रहे यूँ छोड़ के जाने वाले ।।

चन्द रातों की मुलाकात न् सोने देगी ।
याद आएंगे बहुत नींद चुराने वाले ।।

कितना बदला है जमाने का चलन देख जरा ।
तोड़ जाते हैं ये दिल ,प्यार निभाने वाले ।।

इस तरह रूठ के जाने की जरूरत क्या थीं।
यूँ किताबों में गुलाबों को छिपाने वाले ।।

खास अशआर लिखे थे जो कभी खत में तुझे ।
क्या मिला तुझ को मेरे ख़त को जलाने वाले ।।

आज निकले वो गली से तो छुपा कर चेहरा ।
मेरी तस्वीर को आंखों में सजाने वाले ।।

रुख बदलते ही हवाओं ने सितम क्या ढाया ।
खो गए लोग मेरे नाज़ उठाने वाले ।।


प्यार का मैं हूँ मुसाफिर न् मुझे रोको तुम ।
है कई लोग यहां राह बताने वाले ।।

जिंदगी भीड़ में गुजरे ये तमन्ना मेरी ।
मेरी तन्हाई में आते हैं सताने वाले ।।

कोई सुकरात को ,शंकर तो कोई मीरा को।
ज़हर के साथ मिले लोग पिलाने वाले ।।

इश्क़ बिकता है खुले आम जरूरत पे यहां ।
शह्र में खूब हैं दूकान चलाने वाले ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on July 28, 2017 at 12:15am
आ0 बसन्त कुमार साहब शुक्रिया
Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 26, 2017 at 9:59am

वाह  बहुत खूब , सुंदर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 25, 2017 at 8:18pm
आ0 मुहम्मद आरिफ साहब सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 25, 2017 at 8:17pm
आ0 रवि शुक्ला सर सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 25, 2017 at 8:17pm
आ0 कबीर सर सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 6:32pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,'क़तील शिफ़ाई'की ज़मीन में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'याद आओगे बहुत नींद चुराने वाले'
इस मिसरे में 'आओगे'बहुवचन'और रदीफ़''वाले'एक वचन यानी शुतरगुर्बा का दोष है ।
छटे शैर में 'तश्वीर'को "तस्वीर" कर लें ।
सातवें शैर में 'नाज़'शब्द पुल्लिंग है इसलिए 'मेरी नाज़'को "मेरे नाज़" कर लें ।
Comment by Mohammed Arif on July 25, 2017 at 12:15pm
आदरणीय नवीन मणित्रिपाठी जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Ravi Shukla on July 25, 2017 at 10:50am

वाह वाह आदरणीय नवीन मणि जी बहुत ही बढि़या गजल कही है आपने  हर श्‍ोर उम्‍दा  दिली मुबारक बाद कुबूल करें

सातवें शेर का सानी मिसरा

खो गये लो मेरे नाज उठाने वाले होना चाहिये देख्‍ाियेगा । सादर

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