घर के बाहर खुले आंगन में चेहरा लटका कर बैठे देख उसकी माँ ने उसके पास जाकर उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, "परेशान मत हो, अगली बार बेटा ही होगा।"
"नहीं माँ, अब बस। दो बच्चे हो गए हैं, तीसरा होने पर इन दोनों बच्चियों की परवरिश भी अच्छी तरह नहीं कर पाऊंगा।" वहीँ पालने में सो रही अपनी नवजात बेटी को देखते हुए उसने उत्तर दिया।
माँ के पीछे-पीछे तब तक आज ही हस्पताल से लौटी अंदर आराम कर रही उसकी पत्नी को तरह-तरह के निर्देश देकर कुछ और महिलायें भी बाहर आ गयीं थीं। उनमें से एक ने सिर नचाते हुए कहा, "ऊपर वाले की मर्जी होगी तो बुढ़ापे की लाठी आ ही जायेगा।"
दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, उसने आँखें छोटी कर कहा, "वंश को बढ़ाना तो है ही..."
उसने उत्तर दिया, “नहीं ऐसी कोई बात नहीं... मेरी तो बेटे की सिर्फ इच्छा थी, वंश और बुढ़ापे का इससे क्या...”
"क्या पहले जांच नहीं करवाई थी?" तीसरी महिला ने उसकी बात काट कर भवें मचकाते हुए समझदारी भरे स्वर में कहा।
वह हल्का सा चौंका और उस महिला से पूछा, "कैसी जांच?"
महिला फुसफुसाते हुए बोली "जिससे पता चल जाता है कि लड़का है या लड़की?"
सुनते ही वह सख्त शब्दों में बोला, “पता चल जाता तो फिर...?”
“तो फिर...” लड़खड़ाते शब्दों में कहते वह महिला उससे आँख चुराने लगी।
और उसी समय उसकी नवजात बेटी ने ज़ोर की किलकारी मारी।
(मौलिक और अप्रकाशित)
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