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उम्दा भावों से सज्जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आपको, वाह आनंद आ गया आदरणीय
आदरणीय पंकजोम जी आपकी पहली गजल पढ़ रहे है पहले तो गजल पर मुबारक बाद पेश है
दूसरे शेर में निगाहे देख तुम उसकी के स्थान पर निगाहे देखो तुम या निगाहें देख तू उसकी होना चाहिये
वो ....बिस्तर मख़मली उसके लिए बेकार है यारों
उसे मेहनत का हासिल इक निवाला ही सुला देगा .... अच्छा शेर है
5 वें शेर में जिल्ले सुभानी - ए - सितम इस तरकीब पर कुछ संशय हो रहा है विद्वत जन की राय की प्रतीक्षा करें
7 वें शेर मे संभाले को सँभाले कर लीजिये मात्रा भार बराबर हो जागा साथ ही इस शेर का उला मिसरा बहर में नहीं है अाखिरी रुक्न देखिये
आखिरी शेर का सानी मिसरा भी इसी तरह बहर में नहीं है । देखियेगा । सादर
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