For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रुख से वो जब पर्दा हटा देगा

बहर - 1222 1222 1222 1222

वो ख़ुद अपनो का मारा हैं नहीं मुझको दग़ा देगा .....
मुहब्बत में यक़ीनन साथ वो मेरा निभा देगा ......


निगाहें देखकर उसकी , उसे कहते कयामत हो
कयामत होगी तब रुख से वो जब पर्दा हटा देगा ....

यहीं तो सोच के मंदिर में जाकर रोता है मुफ़लिस
कि मेरे अश्क़ को इक दिन ख़ुदा मोती बना देगा ......

वो ....बिस्तर मख़मली उसके लिए बेकार है यारों
उसे मेहनत का हासिल इक निवाला ही सुला देगा ....

मिरा घर है अँधेरे में उसे मालूम होगा जब
वो यारों चाँद है , घर मेरा तारों से सजा देगा ....

सँभाले रख सितमगर से मिलें हर एक ग़म को तू
तिरा हर ग़म तुझे फिर शायरी में फ़ायदा देगा ...

हर इक अपने कि चौखट पर दि दस्तक उस सितमगर ने
फ़क़त........... अब उसको यारों माँ का दिल ही आसरा देगा ......

पंकजोम " प्रेम "

( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 9, 2017 at 10:07am

उम्दा भावों से सज्जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आपको, वाह आनंद आ गया आदरणीय 

Comment by पंकजोम " प्रेम " on August 9, 2017 at 9:39am
आपके सुझाव का दिल से स्वागत करता हूं ..... आ0 ravi shukla जी .....
Comment by पंकजोम " प्रेम " on August 9, 2017 at 9:39am
बहुत बहुत शुक्रिया आ0 mohammad arif साहब जी.....
Comment by पंकजोम " प्रेम " on August 9, 2017 at 9:38am
आपकी इस्लाह और आशिर्वाद का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ...... आ0 samar kaeer साहब जी
Comment by Samar kabeer on August 8, 2017 at 11:04pm
जनाब पंक्जो'प्रेम'जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के ऊला मिसरे में 'हैं'को "है" कर लें ।

दूसरे शैर का ऊला मिसरा यूँ करलें तो रवानी बढ़ जायेगी :-
'निगाहें देख कर उसकी,उसे कहते क़यामत हो'

तीसरे शैर का ऊला मिसरा:-
'यक़ीनन सोच ये मन्दिर में जाके रोता है मुफ़लिस'
इस मिसरे में ज़बान की ग़लती है, इसे यूँ कर सकते हैं :-
'यही तो सोच के मन्दिर में जाके रोता है मुफ़लिस'

'कहे उसको सभी ज़िल्ले सुभानी-ए-सितम यारों'
इस मिसरे में सही शब्द है "ज़िल्ले सुब्हानी"यानी 'ख़ुदा का साया',नाइब-ए-ख़ुदा',बादशाह,इसके साथ इज़ाफ़त के साथ'सितम'शब्द ठीक नहीं,ये मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
उसे सब बादशाह-ए-वक़्त कहते हैं,मगर यारो'

'संभाले रख सितमगर से मिला हर एक ग़म तू'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'सँभाले रख सितमगर से मिले हर एक ग़म को तू'

आख़री शैर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं :-
फ़क़्त अब उसको यारो माँ का दिल ही आसरा देगा'

इस मंच पर ग़ज़ल के साथ अरकान लिखने का नियम है,जो आपने नहीं लिखे,संशोधन के समय लिख दीजियेगा ।
बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Mohammed Arif on August 8, 2017 at 5:40pm
आदरणीय पंकजोम जी आदाब, सबसे पहले ओबीओ मंच पर आपका स्वागत है । बेहतरीन ग़ज़ल का प्रयास । शे'र धर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । आगे गुणीजन अपनी अमूल्य राय से अवगत करवाएँगे , इंतज़ार करें ।
Comment by Ravi Shukla on August 8, 2017 at 5:37pm

आदरणीय पंकजोम जी आपकी पहली गजल पढ़ रहे है पहले तो गजल पर मुबारक बाद पेश है

दूसरे शेर में निगाहे देख तुम उसकी  के स्‍थान पर निगाहे देखो तुम या निगाहें देख तू उसकी  होना चाहिये

वो ....बिस्तर मख़मली उसके लिए बेकार है यारों
उसे मेहनत का हासिल इक निवाला ही सुला देगा .... अच्‍छा शेर है

5 वें शेर में जिल्ले सुभानी - ए - सितम इस तरकीब पर कुछ संशय हो रहा है विद्वत जन की राय की प्रतीक्षा करें

7 वें शेर मे संभाले को सँभाले कर लीजिये मात्रा भार बराबर हो जागा साथ ही इस शेर का उला मिसरा बहर में नहीं है अाखिरी रुक्‍न देखिये

आखिरी शेर का सानी मिसरा भी इसी तरह बहर में नहीं है । देखियेगा । सादर

Comment by पंकजोम " प्रेम " on August 8, 2017 at 5:29pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ0 भाई सुरेन्द्र जी ..... सलामत रहिये
Comment by surender insan on August 8, 2017 at 5:27pm
आदाब भाई पँकज जी। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है। बहुत अच्छे अशआर हुए है जी । दिली मुबारक़बाद कबूल करे जी।
Comment by पंकजोम " प्रेम " on August 8, 2017 at 5:12pm
बहर .. 1222 1222 1222 1222

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service