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कोमल स्पंदन मन चिर उन्मन, (गीत) :अलका ललित

16 मात्रा आधारित गीत (चोपाई छन्द आधारित )

*****

कोमल स्पंदन मन चिर उन्मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

.

किसलय पुंजित ह्रदय हुलसित
उत्कंठा इंद्रजाल पुलकित
नित भोर भये चिर कोकिल-रव
मधु कुंज कुंज गुंजित कलरव

.

रे गंध युक्त मसिमय अंजन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

.

घनघोर घटा चितचोर विहग
नभ अंतःपुर द्युतिमान सुभग
अकलुष प्रदीप्त कोमल उज्ज्वल
तप नेह वेदना में प्रतिपल

.

रे स्वर्ण स्वर्ण हो व्याकुल मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

.

उन्मत्त भोर भीगी मुकुलित
उद्विग्न है संध्या तट कुसुमित
आसक्त मौन उत्कंठातुर
चल रे चल आतुर मन निष्ठुर

.

रे रीत मुक्त प्रीती बंधन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

.

कोमल स्पंदन औ चिर उन्मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

*********

"मौलिक व अप्रकाशित"

चिर--जो बहुत दिनों तक बना रहे ,, उन्मन --(हठयोग) ,,,,,भौंर - भ्रमर , भंवरा
उत्कंठा-- उत्सुकता , ,,विहग --चाँद ,
पुलकित -रोमांच ,..,पुंजित --संचित
सुभग --सुंदर; मनोहर
मुकुलित--अधखिली ,,,, कुसुमित-- उल्ल्सित
उद्विग्न--व्याकुल ,,,,, विहान--भोर , नहान
मसिमय--स्याह

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Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on August 10, 2017 at 3:20pm

आदरणीया KALPANA BHATT जी आपका धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , आभार सादर ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2017 at 9:20pm

आदरणीया विहग  चाँद  कैसे ? विहग तो पक्षी होता है  और छंद  न तो चौपई है और न चौपाई 

किसलय पुंजित ह्रदय हुलसित(15 मात्राएँ

उद्विग्न है संध्या तट कुसुमित----लय बाधित

रे रीत मुक्त प्रीती बंधन-------- प्रीति -------------रीति मुक्त  रीति काल के वे कवि  है जो रीति में नहीं उलझे मगर आपका  रीत  मुक्त अलग ह

अगर इन कुछ बातों  को हटा दें तो गीत रमणीय  कहा जाएगा , सुन्दर शब्द चयन , सुकोमल भाव  निश्चित रूप से बधाई की पात्र है आप .सादर .

Comment by Samar kabeer on August 9, 2017 at 7:02pm
मोहतरमा यलक ललित जी आदाब,बढ़िया लगे आपके छन्द,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 9:02pm

सुंदर रचना हुई है आदरणीया अलका जी |

कृपया ध्यान दे...

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