अस्सी वर्षीय बाबू केदार नाथ ने अपने कानों में सुनने वाली मशीन लगाकर मफ़लर लपेट लिया| आईने में खुद को देखकर आश्वस्त हुए| मशीन पूरी तरह मफ़लर के नीचे छिप गया था| अब उन्होने पुराना टेप रिकार्डर निकाला और प्रिय गाना बजा दिया|
बरेली के बाज़ार में झुमका गिरा रे-कमरे में आशा भोसले की नखरीली आवाज़ गूंज उठी|
बाबू केदारनाथ के होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कान खेल गई|
अजी सुनते हो! उनके कानो से एक तेज कटार सी आवाज टकराई|
अपने बाउजी को समझाते क्यों नहीं, जब से दीदी के यहाँ से लौटे हैं, अजीब हरकते हो गईं हैं इनकी तो|
क्या हो गया, गाना ही तो सुन रहे हैं| यह बेटे की आवाज़ थी|
अरे!! सुनाई देना कब से बंद हो गया है| पहले अच्छे खासे अपने कमरे में पड़े रहते थे
अब तो जब देखो कैसेट पर कुछ भी बजा देते हैं, कान पक गए सुनते- सुनते झुमका गिरा रे|
बाबू केदार नाथ एक बार फिर मुस्कुराए और नाश्ते की मेज पर जाकर बैठ गए|
फिर वही दलिया! उन्होने मुंह बनाया
प्रतिउत्तर में बहू कर्कश स्वर में श्वसुर के मौत की कामना करने लगी|
इस बार वह नहीं मुस्कुरा सके| चुपचाप ड्राइंग रुम में जाकर बैठ गए और अखबार पढ़ने लगे | वहाँ बेटा फोन पर किसी से बात कर रहा था|
-जमीन भले ही बाबूजी के नाम पर है लेकिन उन्हें बताएगा कौन? जब तक बात खुलेगी तब तक वह ऊपर सिधार चुके होंगे| आप तो कागज तैयार करवाइए| वह प्लॉट बेचनी ही है किसी भी सूरत में|
बदन में एक झुरझुरी सी उठी| वह धीरे से उठे और छड़ी टेकते निकट स्थित झील किनारे टहलने लगे| मगर आवाजें पीछा नहीं छोड़ रह थीं| तभी फोन की घंटी बजी| जेब से फोन निकालकर देखा तो डिस्प्ले पर आ रहा था दामादजी कॉलिंग| उन्होने फोन काट दिया| आँखेँ बरसने लगीं| दूर कहीं कोई चिड़िया बोली| बाबू केदारनाथ अंतिम बार मुस्कुराए और कानों से सुननेवाली मशीन निकालकर झील की तरफ उछाल दिया| हल्की छपाक की आवाज कानों से टकराकर चूर-चूर हो गई। श्रवणद्वार मजबूती से बंद था| वह बस पानी में बना वर्तुल देखते रहे थे जो कुछ पल में शांत हो गया| काँपते हाथों से फोन पर संदेश टाइप करने लगे –सुनने वाली मशीन दिलाने के लिए बहुत बहुत आशीर्वाद बेटे| मगर अब वह मेरे पास नहीं है, क्योंकि जब मैं नहीं सुन पा रहा था तब कहीं ज्यादा सुखी था|
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत प्रभावशाली लघुकथा लिखी है आदरणीय सारिका जी । अत्यंत प्रभावशाली कथानक और उससे सी बढ़ीया प्रस्तुतिकरण । बुज़ुर्गों की उपेक्षा जैसी सामाजिक समस्या को बाखूबी उभारती इस लघुकथा में जो दृश्य निर्माण किया है वह काबिले तारीफ है । और लघुकथा का अंत में दूर से चिड़ीया की आवाज़ को सुनने के बाद मशीन को झील में फैंक देना और पानी में बना वर्तुल देखने जैसे प्रतीकों का कुशल प्रयोग लघुकथा को नए आयाम प्रदान कर रहा है । लघुकथा जिस प्रकार धीरे धीरे शिखर पर पहुंच कर अंत में एकदम से धमाका करती है वह लेखकीय कौशल का शानदार नमूना है । हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें ।
अच्छी लघु कथा के लिए बधाई
बहूत बढ़िया सारिका जी ,बुज़र्गों की व्यथा का चित्रण बढ़िया हुआ है |बधाई |
घर के बुजुर्गों की पीड़ा को बहुत अच्छे से चित्रित किया है आपने आदरणीया | हार्दिक बधाई |
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