अरकान हैं 'फ़ाइलातून फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है
दोस्ती में तिरी धोका सा नज़र आता है
तूने छोड़ा था मुझे यार किसी की शह पर
इसलिये आज तू तन्हा सा नज़र आता है
ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी
तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है
है शिकन साफ़,शिकस्तों की तिरे माथे पर
तू हमें कुछ डरा सहमा सा नज़र आता है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
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आदरणीय संतोष जी आपकी रचना का स्वागत है पर आपने यदि इसे गजल विधा के तहत पोस्ट किया है तो उसके अरकान लिखिये जिससे कि उसके शिल्प पर बात की जा सके और अरकान लिखने का नियम मंच का एक अनुशासन है । अब बात करें रचना की तो गजल के अनुसार इसका रदीफ नजर आता है हो गया उससे पहले काफिया होना चाहिये जो की सभी मिसरों ( पंक्तियों में ) अलग है । गजल में बहर और काफिया जरूरी है अगर ये नहीं है तो उसे कुछ भी नाम दिया जा सकता है पर गजल नहीं । यदि आप काव्य की किसी विधा में अभ्यास करना चाहते है तो मंच पर बहुत से ग्रुप है उनमें सारी जानकारी है पढ़ कर आप लाभ ले सकते है । सादर
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