For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतर्मन भावना - लघुकथा

"बेटा साहब को आदाब करो।" खालिद ने उसे इशारे से कहा तो बच्चे ने हाथ उठा जरा सा सिर झुका दिया।

कई हफ्तों बाद वह खालिद के पास आया था। एक हादसे में अकेला रह जाने के बाद से खालिद, 'घाटी' की उस खंडहर बनी मस्जिद में तन्हा ही जिंदगी गुजार रहा था और अक्सर दहशतगर्दो से जुडी अहम खबरें उसे दे दिया करता था। बच्चे को साथ देख वह सहज ही उसके बारें में जानने को उत्सुक हो गया। "इस बच्चे का परिचय नही दिया तुमने खालिद मियाँ!"

"कुछ ज्यादा तो मैं भी नहीं जानता साहब। बस यूँ समझिये, मेरी ही तरह हादसे का शिकार है और चंद दहशतगर्दो पर आप फौजियों की कार्यवाही में ही ये अपना सब कुछ खो बैठा है। हादसें ने बेचारे को पूरी तरह खामोश कर दिया है जनाब।" अपनी बात कहते हुए खालिद की नजरें सहज ही उसकी ओर जा टिकी, उसे लगा मानो कह रही हो। "हमारे गुनाहगार भी आप ही हो जनाब।"

"खालिद मियाँ!" मन के भाव को दबाते हुये उसने सलाह देनी चाही। "बेहतर होता कि तुम इसे किसी ऐसी जगह के हवाले करते जहां इसका मुक्कमल इलाज और परवरिश हो पाती।"

"साहब, यतीमखानो के हालात तो आप जानते ही हो और फिर मैं नही चाहता था कि इस पर किसी शैतान का साया पड़े। बस इसीलिए मैंने इसे अपने साथ ही रख लिया।"

"क्या सीखेगा यहाँ? दहशतगर्दी!" उसके चेहरे पर व्यंग्य के भाव आ गए।

"नही जनाब!" खालिद के चेहरे पर एक यकीं चमकने लगा। "मैं तो इसे आप की तरह एक बहादुर जवान बनाऊंगा।" कहते हुये खालिद की नजरें उसकी फौजी वर्दी पर जा टिकी।

"खालिद मियाँ एक बात कहूँ।" मन में गहरे लगी बात ने उसे एकाएक गंभीर कर दिया। "तुम इस मासूम को 'जवान' न बना सको तो न सही, लेकिन हो सके तो एक इंसान बनाने की कोशिश जरूर करना।" बात पूरी करते-करते उसकी नजरें अपनी ही वर्दी पे लगे चंद धब्बों पर जा चुकी थी।
विरेंदर 'वीर' मेहता
(मौलिक अप्रसारित व् अप्रकाशित )

Views: 867

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on September 8, 2017 at 6:25pm

आपकी रचनाओं को पढ़ना किसी ग़ज़ल को पढ़ने जैसा होता है आ वीर भाई, बेहद खूबसूरती से लिखी हुई भावनात्मक रचना जिसे पढ़कर मन सन्तुष्ट हो गया| बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए  

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 29, 2017 at 10:13pm
आदरणीय समर कबीर भाई जी, रचना पर आपके हौसला बढ़ाते शब्दों के लिये तहे दिल से शुक्रिया। अनुज के प्रति आपका प्रेम बना रहे, यही कामना है। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 29, 2017 at 10:11pm
आदरणीया कल्पना जी रचना पर आपके स्नेहिल शब्दों के लिये हार्दिक आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 29, 2017 at 10:08pm
आदरणीय रवि प्रभाकर भाई कथा के प्रारम्भ में ही हुयी त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिये सादर शुक्रिया। कथा के शीर्षक पर मैं स्वयं भी संतुष्ट नही हो पाया हूँ, लेकिन चाह कर भी मुझे ऐसा कोई शीर्षक नही सूझ रहा था जो पूरी रचना को एक शब्द में परिभाषित कर दे। कथा की सारगर्भित समीक्षा के लिये आपका हार्दिक आभार। रचना के शीर्षक के लिये आप से भी आग्रह, यदि कोई सार्थक शब्द मिले। सादर भाई जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 29, 2017 at 10:02pm
आदरणीय चंद्रेश कुमार जी, रचना पर आपके स्नेहिल शब्दों और प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिये दिल से आभार। सादर।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 29, 2017 at 11:39am

बहुत ही बढ़िया लघुकथा कही है आदरणीय वीर मेहता भाई जी, अंतिम पंक्ति बहुत गहरा संकेत करती है| हार्दिक बधाई स्वीकार करें|

Comment by Ravi Prabhakar on August 28, 2017 at 8:37pm

आदरणीय वीर भाई लघुकथा बहुत अच्‍छी बनी है । लघुकथा की शुरूआत में बेटा साहब को आदाब करो बेटा साहब को आदाब करो होना चाहिए । लघुकथा का शीर्षक चयन उचित नहीं लग रहा । प्रतिपाद्य के अनुरूप शीर्षक का होना नितांत वांछनीय है। लघुकथा में व्‍यक्‍त विचार, भाव, तथ्‍य तथा मर्म की सामूहिक ध्‍वनि का संदेशवाहक शीर्षक नहीं हुआ तो लघुकथा की सार्थकता को ठेस पहुंचती है । सादर

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 28, 2017 at 6:38pm

गंभीर विषय पर आपका यह लेखन हुआ है आदरणीय वीर जी , बढ़िया कथा हुई है , हार्दिक बधाई |

Comment by Samar kabeer on August 27, 2017 at 2:37pm
जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Nita Kasar on August 25, 2017 at 8:02pm
धीर गंभीर विषय पर आधारित कथा के लिये बधाई आद० वीरेंन्द्र मेहता जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service