मापनी २२ २२ २२ २२
सुबह के’ मंजर से उजले हो,
दिल को लगते बहुत भले हो.
एक नजर देखा है जब से,
सपने जैसा दिल में’ पले हो.
सारी दुनिया जान गयी है,
तुम तो नहले पर दहले हो
पल पल धूप सही है हमने,
और पले तुम छाँव तले हो.
ताप सहा हमने दर्दों का,
मोम सरीखे तुम पिघले हो.
जिनको भी चाहा दुनिया में,
उनमें तुम सबसे पहले हो.
जम कर बैठ गए हो दिल में,
पल भर को भी कब निकले हो
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी दिल से शुक्रिया आपका
आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी आभार आपका
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपके आशीष को सादर नमन
आदरणीय Samar kabeer जी मार्गदर्शन हेतु दिल से शुक्रिया आपका
आदरणीय बसंत भाई अच्छी गज़ल कही है बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय Samar kabeer जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से ,मतले का काफिया या बाकी में भी कुछ काम करना पड़ेगा ?, मार्गदर्शन करें
आदरणीय Mohammed Arif जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
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