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मापनी  २२ २२ २२ २ 

इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर

टूट न  जाए नाजुक दिल,
उससे भीतरघात  न कर

ख्यात न हो, कुछ बात नहीं,
पर खुद को कुख्यात न कर

मानव तो बस मानव है,
ऊंची नीची  जात न कर

खुलकर गले न मिल पाए,
पैदा  वो  हालात  न कर

पास बैठ  सुलझा  मुद्दे
थप्पड़ घूँसा लात न कर

भारत, भारत ही अच्छा,

संस्कृति काआयात  न कर

 

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

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Comment

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Comment by नन्दकिशोर दुबे on September 24, 2017 at 3:37pm
भाई bsntkumarjee बहु सुन्दर रचना ।
आनन्द आ गया ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 19, 2017 at 4:33pm
आ. भाई बसंत जी, हार्दिक बधाई ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2017 at 1:11pm

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी , आपके उत्तम सुझाव का दिल से स्वागत है, सुधार कर देता हूँ.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 19, 2017 at 1:07pm

आ. बसंत कुमार जी 
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई 
.
उससे भीतरघात  न कर...इससे  भीतरघात  न कर (दूर की चीज़ को उससे और क़रीब को इससे)
सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2017 at 12:55pm

aआदरणीय Samar kabeer जी आपका अतिशय आभार , यूँ ही मार्गदर्शन करते रहिये सादर 

Comment by Samar kabeer on September 19, 2017 at 11:56am
जी,अब मिसरा ठीक है ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2017 at 9:51am

आदरणीय Mohammed Arif जी आपका तहे दिल से शुक्रिया इसे इस तरह किया है 

संस्कृति का आयात न कर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2017 at 9:50am

आदरणीय Samar kabeer जी मेरी रचना की त्रुटि  पर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपका शुक्रिया , इसे ऐसे ख सकते हैं 

संस्कृति को आयात न कर , शायद ठीक लगे. 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2017 at 9:48am

आदरणीय Niraj Kumar जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by Mohammed Arif on September 19, 2017 at 9:40am
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, अच्छे अश'आर । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर करें । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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