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आद0डॉ आशुतोष मिश्र जी सादर अभिवादन। लघुकथा पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका
आद0डॉ आशुतोष मिश्र जी सादर अभिवादन। लघुकथा पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका
आदरणीय सुरेन्द्र जी बहुत ही शानदार लघु कथा लिखी है आपने . आपके तर्क से मैं बिलकुल सहमत हूँ ..वाकई छात्र अभूतपूर्व होता है एक अच्छी नसीहत भी दी है आपने ..हमें हमारे संस्कारों की याद दिलाती शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
बहुत ही बढ़ीया प्रयास आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई जी । उस्मानी भाई से पूरी तरह सहमत कि यह आपका पहला प्रयास नहीं लग रहा। खचाखच भरी बस का कुशलता से दृश्य चित्रण किया है । लघुकथा में निहित अर्थगर्भी संदेश बहुत प्रभावशाली है जो सहजता से उभर कर सामने आ रहा है । शीर्षक चयन बेहतर हो सकता था । मेरे हिसाब से शीर्षक 'गुरू' बढ़़ीया रहता क्योंकि जो लघुकथा का सार है वो तो यही है कि गुरू आखिर गुरू ही होता है। इस बेहतर प्रयास हेतु मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं और उम्मीद है कि भविष्य में भी आपसे सार्थक लघुकथाएं मिलेंगी । सादर
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