For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम ही बताओ न ...

क्या हुआ
हासिल
फासलों से
आ के ज़रा
तुम ही बताओ न

इक लम्हा
इक उम्र को
जीता है
ख़ामोशियों के
सैलाब पीता है
उल्फ़त के दामन पे
हिज़्र की स्याही से
ये कैसी तन्हाई
लिख डाली
आ के
ज़रा
तुम ही बताओ न

ये किन
आरज़ूओं के अब्र हैं
जो रफ्ता रफ़्ता
पिघल रहे हैं
एक लावे की तरह
चश्मे साहिल से

क्यूँ हर शब्
तेरी मख़मूर नज़रें
मेरे तन्हा लम्हों में
मुख़ातिब होती हैं
मुझसे

क्यूँ तेरे बदन की
आबनूसी महक
मुझे
बैचैन किये रहती है

क्यूँ मेरे ख्यालों के
जिस्म पर
तुम्हारे अनबोले लम्स
आज भी
रक़्स करते हैं

मेरे अश्कों की लकीरों में
तैरते सवालों को
अंजाम दे जाओ


तिश्नागर लबों को
अपने लबों से
ग़ुम हुई पहचान
दे जाओ


ले गयी थी
जो मुझसे छीन के
सूखे ही सही
वही गुल
वही अरमान दे जाओ


कब तलक ठहरूं
गैरों के शानों पर
फ़ना होने से पहले
आ के
ज़रा
तुम ही बताओ न


मेरे चेहरे को
उड़ते कफ़न से

आ के 
ज़रा
ढक जाओ न

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 15, 2017 at 2:06pm

आदरणीय राज़ नवादवी  साहिब सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार। आउट आफ स्टेशन होने के कारण प्रत्युत्तर देने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहता हूँ। थैंक्स 

Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 8:13pm

आदरणीय  Sushil Sarna जी, बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने प्रेम की विवशता का. बधाई स्वीकार करें. 

Comment by Sushil Sarna on September 7, 2017 at 7:58pm

आदरणीय मुकेश श्रीवास्तव जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on September 7, 2017 at 7:58pm

आदरणीय मो. आरिफ़ साहिब, आदाब। .. सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on September 7, 2017 at 7:58pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , प्रस्तुति आपकी आत्मीय स्नेह बरखा की आभारी है। हार्दिक आभार।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 7, 2017 at 4:42pm

achehe rachnaa mtirawar

Comment by Mohammed Arif on September 7, 2017 at 7:43am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Samar kabeer on September 6, 2017 at 5:52pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service