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वही वंशज है सूरज का - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

1222 1222 1222 1222

न जीवन राख कर लेना किसी की डाह में यारो
हमेशा सुख सभी का हो तुम्हारी चाह में यारो।1।

विचारों की गहनता हो न हो व्यवहार उथला ये
सुना मोती ही मिलते हैं समुद की थाह में यारो ।2।

वही वंशज है सूरज का बुजुर्गों ने कहा है सच
जलाए दीप जिसने भी तिमिर की राह में यारो ।3।

किसी को देके पीड़ा तुम न उसकी आह ले लेना
न जाने कैसी ज्वाला हो किसी की आह में यारो।4।

गगन के स्वप्न तो देखो धरा लेकिन न त्यागो तुम
हवा में उड़ना मत सीखो कि झूठी वाह में यारो ।5।

रिवाजों में है पतझड़ से तो पीड़ा ही मिला करती
दखल होने न दो गम का कभी मधुमाह में यारो।6।

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by Samar kabeer on September 6, 2017 at 5:58pm
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 6, 2017 at 5:39pm

आदरणीय लक्ष्मण जी कमाल की ग़ज़ल कही है आपने किसी को देके पीड़ा तुम न उसकी आह ले लेना
न जाने कैसी ज्वाला हो किसी की आह में यारो।4।इस शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2017 at 6:11am
आ. भाई सुरेन्द्र जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 6, 2017 at 4:21am
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन,वाह वाह वाह क्या कहने, बेहतरीन सार्थक ग़ज़ल..हर एक शेर बेमिसाल..सादर। दाद के साथ बधाई स्वीकारें।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 11:30pm
आ. भाई बृजेश जी, इस स्नेहाभिब्यक्ति के लिए आभार ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 11:28pm
आ. भाई वाचस्पति जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 11:27pm
आ. भाई सुशील जी ,गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए धन्यवाद ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 11:25pm
आ. भाई गजेन्द्र जी ,गजल के अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 5, 2017 at 10:51pm
वाह वाह वाह क्या कहने आदरणीय बेहतरीन सार्थक ग़ज़ल..हर एक शेर बेमिसाल..सादर
Comment by indravidyavachaspatitiwari on September 5, 2017 at 6:46pm

’’दखल न होने दो गम कभी मधुमाह में यारों’’ वाह क्या कहने है हिम्मत आफजाई के । संदेश आपका जनता को काफी सोचने का मौका देता है। इस हृदयग्राही रचना को व रचयिता को हार्दिक बधाई।

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