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दिल की बातें वो भी समझें ये सोचा था
होंगी मिलकर सारी बातें ये सोचा था ?
चले जायेंगे अपने रस्ते वो भी इक दिन
रह जाएंगी तन्हा रातें ये सोचा था ?
जीवन जैसा होगा उसको जी लेना है
दर्दो अलम की ले सौगातें ये सोचा था ?
एक बहाना मुझको जीने का मिल जाता
रह जातीं बस उनकी यादें ये सोचा था ?
डूब गयीं हूँ प्यार में जिनके मैं " रौनक" जी
इक दिन मुझको वो भूलेंगे ये सोचा था ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया KALPANA BHATT ('रौनक़') जी , बहुत सुंदर ग़ज़ल ,हार्दिक बधाई । सादर.
आ. कल्पना मैम, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
धन्यवाद् आदरणीय रामबली गुप्ता जी |
धन्यवाद आदरणीय बृजेश कुमार जी |
सादर धन्यवाद् आदरणीय तेज वीर सिंह जी |
धन्यवाद आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब |
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