२२ २२ २२ २२ २२ २२
दिल की बातें वो भी समझें ये सोचा था
होंगी मिलकर सारी बातें ये सोचा था ?
चले जायेंगे अपने रस्ते वो भी इक दिन
रह जाएंगी तन्हा रातें ये सोचा था ?
जीवन जैसा होगा उसको जी लेना है
दर्दो अलम की ले सौगातें ये सोचा था ?
एक बहाना मुझको जीने का मिल जाता
रह जातीं बस उनकी यादें ये सोचा था ?
डूब गयीं हूँ प्यार में जिनके मैं " रौनक" जी
इक दिन मुझको वो भूलेंगे ये सोचा था ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कल्पना जी , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । आ. समर भाई जी की बातों का संज्ञान कीजियेगा ।
गज़ल अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई, आदरणीया कल्पना जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी।बेहतरीन गज़ल।पहली बार आपकी गज़ल पढ़ी।अच्छा प्रयास।
आदाब आदरणीय समर भाई जी | जी भाई जी अभी सही करती हूँ , सादर धन्यवाद आपका , आप बहुत अच्छे से सिखाते हैं हम जैसे नवोदितों को , साधुवाद आपको | सादर प्रणाम |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online