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हुआ क्या आपको जो आप कहती बढ़ गयी धड़कन

अजब सी है जलन दिल में ये कैसी है मुझे तड़पन
उसे अहसास तो होगा बढ़ेगी दिल की जब धड़कन'

दिखा है जबसे उसकी आँखों में वीरान इक सहरा

मुझे क्या हो गया जाने कहीं लगता नहीं है मन

गले को घेर बाँहों से बदन करती कमाँ जब वो'

मुझे भी दर्द सा रहता मेरा भी टूटता है तन

वो रो लेती पिघल जाता हिमालय जैसा उसका गम

मगर सूरज के जैसे जलता रहता है मेरा तन मन

'नज़र मिलते ही मुझसे वो झुका लेते हैं यूँ गर्दन

ये मंज़र देख उठती है लहर क्यों खो गया बचपन

वही ज़ुल्फ़ें जिन्हें मैं खींचता था छेड़खानी में

उन्ही ज़ुल्फ़ों को बिखरा देख अब छाता है पागलपन

'लड़ाना नैन खेलों में सुकूँ देता था बचपन में

जवानी में वही दिल को दिया करता है सूनापन

नजर मिलते ही मुझसे झुकती उसकी पलकें औ गर्दन

ये मंजर देख उठती है काशिस क्यूँ खो गया बचपन

जवानी है यही आशू जवानी में यही होता
बढ़ी धड़कन थमी सांसें निगाहों में दिवानापन


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on September 27, 2017 at 7:56am
आदरणीय आशुतोष जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल का प्रयास । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 12:26am
गजल पर अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीय आशुतोष मिस्र जी। बधाई स्वीकारें। मक्ते के ऊला में लय बिगड़ी है कृपया बह्र चेक कर लें। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2017 at 7:48pm
आदरणीय तेजवीर जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 7:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।बेहतरीन गज़ल।

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