इतने साल बीत गये
ना वो बदली जरा ना मैं !
आज भी उसे नहीं पसंद
मेरा किसी और से बात करना !
मुझे भी आजतक नहीं भाया
उसका किसी को देख मुस्काना !
उसे अच्छा नहीं लगता जब
मेरा ध्यान उससे हट जाना !
मुझे पसंद नहीं आता उसका
मुझे छोड़ टी.वी. तक देखना !
वो कहती है सुनो प्रिय
मैं सामने हुं तो मुझे ही देखो !
मुझे भाता है उसे चिडाना
दूसरों को देख देख मुस्काना !
उसे पसंद तक नहीं मेरा चश्मा
मेरी आंखों पर हमेशा रहता !
चश्मा लगाकर सामने मत आना
चश्मा देख उसका चिड-चिडाना !
सामने है वो और मोबाईल हाथ
देखते ही उसका गुस्से से भर जाना !
मेरे पास हो तो मेरे साथ भी रहो
कह कर उसका उदास हो जाना !
किसी और की बात क्या करना
बाकी है अभी एक दूजे को समझना !
हमे आज तक नहीं पसंद आया
एक दूजे का किसी और से जुडना !
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मौलिक- अप्रकाशित रचना
जयति जैन (नूतन), रानीपुर झांसी
Comment
bahut bahut shukriya sabhi gunijano ka
मोहतरमा जयति जैन,इस प्रस्तुति पर बधाई
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