बाहर हैं तो अभी सीधा घर जाइये
घर जाकर टी.वी. में आग लगाइये
सभी जाति -धर्म के लोग दिखाई देगें
फिल्म - सीरियल पर नजर दौड़ाइये
बच्चों को उस स्कूल में डालिये
जहां आपकी जाति के शिक्षक होने चाहिये
सामान हर दुकान से मत खरीदिये
दुकान भी आपकी जाति धर्म की होनी चाहिए
किस धर्म के आदमी ने बनाया है ये सामान ?
अपनी जाति के दुकानदार से पुछवाईये
आप सेकुलर नहीं जो किसी के भी हाथ का खालें
इसलिए कुछ दिन हो सके तो भूंखे ही सो जाइये
कपडा - लत्ता और मकान बनवाना हो यदि
अपनी जाति के सभी कारीगर ढूंढ लाइये
माँ बाप बीमार हो तो किसी के भी यहाँ मत जाइये
अपनी जाति का डॉक्टर ढूंढ इलाज़ करवाइये
ना मिले आपकी जाति - धर्म का डॉक्टर -वैध -हकीम
तो माँ -बाप को मरने के लिए यूँ ही घर बैठाइये
राम नाम सत्य बोलिये और बुलवाइये
हम सारे भारतीय सेकुलर ही थे और रहेंगे
दिमाग के इंजन में तेल जरा भरवाइये
सैकड़ो बातें हैं जो आपस में जोड़ती हैं
जाति - धर्म छोड़ सभी मानवता अपनाइये
सबसे मिलना , सभी संग चलना पहचान हो
मैं सेकुलर हूँ इस बात पर गुरूर होना चाहिये !
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मौलिक- अप्रकाशित रचना
जयति जैन "नूतन" , रानीपुर झांसी उ.प्र.
Comment
सभी का बहुत बहुत आभार
आदरणीय जयति जी व्यंग्य करती हुयी सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
आ. जयति जी, अच्छी लगी आपकी कविता. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. कविता में सेकुलर शब्द है और शीर्षक में "सेक्युलर".
2. //मैं सेकुलर हूँ इस बात पर गुरूर (या "गर्व"?) होना चाहिये !// देख लीजिएगा.
सादर.
आदरणीया जयति जी , पहले तो आपका ओपन बुक्स ऑनलाइन पर हार्दिक स्वागत हैं | आपकी रचना पहली बार पढ़ रहीं हूँ , बहुत ही गंभीर विषय और अलग ही विषय पर आपने लिखा है , जिसके लिए हार्दिक बधाई | शुभकामनाये आपको |
आ. जयती जी,
रचना के शिल्प आदि पर मैं टिप्पणी करने में असमर्थ हूँ लेकिन इस विषय को चुनने और अपने भाव खुल कर रखने के लिए बधाई ..
जो हिन्दू हैं या मुसलमान हैं या किसी और मज़हब को अपनी पहचान मानते हैं उनका शर्मिंदा होना लाज़िम है ... जो स्वयमं को पहले इंसान मानते हैं वो सेक्युलर हैं...और इस बात पर गर्व भी करते हैं ..
बधाई
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