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देख रिश्तों की ......संतोष

अरकान:-फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन

देख रिश्तों की ऐसी बनावट न कर
दोस्त है दुश्मनी की मिलावट न कर

झूट कहने में हर शख़्स माहिर हुआ
सच यहाँ बोलने की दिखावट न कर

ज़ख़्म दिल के हैं दिल में उन्हें दफ़्न रख
अपने चहरे पे उनकी सजावट न कर

टूट जायेंगे रिश्ते ज़रा देर में
कच्चे धागों से इनकी बुनावट न कर

भूक से थे ये बेताब सोए अभी
देख ये जाग जायेंगे आहट न कर
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on October 8, 2017 at 11:51pm
प्रणाम आदरनीय समर साहब ....धन्यवाद!!
Comment by santosh khirwadkar on October 8, 2017 at 7:45am
हृदय से आभार आदरणीय आरिफ़ साहब
Comment by Mohammed Arif on October 8, 2017 at 7:32am
आदरणीय संतोष खिरवड़कर जी आदाब, बहुत ही मारक क्षमता वाली ग़ज़ल । हर शे'र सामयिक । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by santosh khirwadkar on October 8, 2017 at 7:19am
धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र जी ....
Comment by santosh khirwadkar on October 7, 2017 at 7:49pm

शुक्रिया, आदरणीय सलीम साहब ..... 

Comment by नाथ सोनांचली on October 7, 2017 at 7:47pm
आद0 सन्तोष खैरवाड़कर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल पर दाद के साथ दिली मुबारकबाद
Comment by SALIM RAZA REWA on October 7, 2017 at 7:11pm
जनाब संतोष जी
,ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on October 7, 2017 at 7:08pm
जनाब संतोष जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

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