ग़ज़ल २२१ २१२१ १२२१ २१२
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लूटा जो तूने है मेरा, अरमान ही तो है
उजड़ा नहीं है घर मेरा, वीरान ही तो है
वादा खिलाफ़ी शोखी ए खूबाँ की है अदा
आएगा कल वो क़स्द ये इम्कान ही तो है
सीखेगा दिल के क़ायदे अपने हिसाब से
वो शोख़ संगदिल ज़रा नादान ही तो है
नज़रे करम कि हुब्ब के कुछ वलवले उठे
मेरे जिगर में आपकी ये तान ही तो है
आकर जो मेरे होंठ को छूती है तेरी साँस
होशो हवास के लिए तूफ़ान ही तो है
तुझसे किया गुरेज़ ये इलज़ाम मुझपे क्यों
ख़त जो लिखा है, प्यार का ऐलान ही तो है
कितना लडूँ ज़मीर से, कितना जहान से
दुनिया बदलते वक़्त की मीज़ान ही तो है
मरने की बात क्यों करें, चाहत दिखाने को
मरना किसी भी हाल में आसान ही तो है
वादे पे अपनी जान भी दे दें तो क्या ग़लत
इंसाँ में और है भी क्या, ईमान ही तो है
अच्छा है, ख़ुद शनास है, दिल भी है उसके पास
कुछ भी कहो पर आदमी इंसान ही तो है
रहता कहाँ हूँ, नाम क्या, करता हूँ काम क्या
सब कुछ पता है पर ख़ुदी अंजान ही तो है
आ जा तुझे नवाज़ दूँ जानो जिगर से मैं
ऐवाने दिल में तू मेरा महमान ही तो है
डरता है मेरे दिल में क्यों रखने से अपने पाँव
बस्ती ये आदमी की है, सुनसान ही तो है
घबरा न 'राज़' प्यार की करके तू पेशकश
उसने तो 'ना' किया नहीं, हैरान ही तो है
~ राज़ नवादवी
खूबाँ- ख़ूब का बहुवचन, सुन्दर स्त्रियाँ, माशूकाएं
क़स्द- संकल्प, इरादा, कामना
इमकान- संभावना
हुब्ब- प्रेम, स्नेह, मुहब्बत
वलवले- उत्साफ, उमंग, आवेग, जोश
तान- तीर मारना, कटाक्ष
गुरेज़-उपेक्षा
ज़मीर- अंतःकरण
मीज़ान- तराजू
ख़ुद शनास- स्वयं को पहचानने वाला
ऐवान- महल, शाही महल
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय हार्दिक बधाई |
आदरणीय भाई अजय तिवारी जी, आपकी सुखन नवाज़ी और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर!
घबरा न 'राज़' प्यार की करके तू पेशकश
उसने तो 'ना' किया नहीं, हैरान ही तो है
आदरणीय राज़ नवादवी जी,अच्छी ग़ज़ल कही है. शुभकामनाएं.
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