मुफ्तइलुन मुफाइलुन // मुफ्तइलुन मुफाइलुन
2112 1212 // 2112 1212
क्या करें और क्यों करें, करके भी फायदा नहीं
दिल में जो दर्द है तो है, लब पे कोई गिला नहीं
उसके कहे से हो गये, लाखों के घर तबाह पर
उसने कहा कि उसने तो, कुछ भी कभी कहा नहीं
सच तो हमेशा राज था, सच था हमेशा सामने
सच तो सभी के पास था, ढूंढे से पर मिला नहीं
दोनों के दोनों चुप थे पर, गहरे में कोई शोर था
दोनों ने ही सुना मगर, दोनों ने कुछ कहा नहीं
जाने खिलेंगे ख्वाब कब, जाने कब आएगी बहार,
वक्त के आसमान पर, अब भी कोई घटा नहीं
जब भी जलाओ तुम दिए, अपनी मुड़ेर पर कभी
सोचो कुछ उनके बारे में, जिनका दिया जला नहीं
"मौलिक-अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र जी,
उदार सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सादर
आदरणीय बृजेश जी,
आपकी उदार प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सादर
आदरणीय राम अवध जी,
आभार आपका, गलती किसी से भी हो सकती है. ये कोई बड़ी बात नहीं है.
सादर
आदरणीय राम अवध जी,
आपने गलत अरकान पर ग़ज़ल को देखने की कोशिश की है. इस ग़ज़ल की बहर 'रजज़ मुसम्मन मतवी मख़्बून' (मुफ्तइलुन मुफाइलुन मुफ्तइलुन मुफाइलुन) है. ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल 'दिल ही तो है न संगो-खिश्त दर्द से भर न आए क्यों ' इसी बहर में है. इस बहर के अरकान के हिसाब से देखें मिसरे बिलकुल ठीक है.
प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सादर
आदरणीय सलीम साहब,
प्रशंसा के लिए पुनः हार्दिक धन्यवाद.
सादर
आदरणीय अजय तिवारी जी ,
पूरी ग़ज़ल खूबसूरत है दिल से मुबारक़बाद ,
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