सुख की एक लाश ...
एक अंतराल के बाद
विस्मृति भंग हुई
तो चेतना
सूनी आँखों से
उबलते लावों में
परिवर्तित हो
बह निकली
व्याकुलता के कुंड में
प्रश्नों की ज्वाला में तप्ती
असंख्य अभिलाषाओं को समेटे
जीवन के अंतिम क्षितिज पर
ज़िंदा थी
एक लाश
सुख की
छिल गए
भरे हुए
घाव सभी
जब स्मृति जल ने
अपने खारेपन से
उनपर नमक छोड़ दिया
जलती रही देर तक
मात हो चुकी बाज़ी की
अवचेतन में सोयी
एक लाश
सुख की
न जाने
कितने संकेत
प्रतीक्षा की देहरी पर
श्वासहीन देह लिए
अनंत निद्रा में लीन हो गए
कितने मधुपल
तिमिर से समझौता कर
उसी में खो गए
शेष थी तो बस
अतीत के अवगुंठन में
अवसाद को जीती
सुख की
एक लाश
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी सृजन के भावों को अपने स्नेह से पोषित करने का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन को अपनी आत्मीय सम्मान से सुसज्जित करने का दिल से आभार।
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी सृजन के भावों को अपने स्नेह से पोषित करने का दिल से आभार।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , प्रस्तुति के भावों को सहमति देती आपकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील जी शानदार बिचारों से ओतप्रोत इस रचना के लिए ढेर सारी बधाई सादर
बढ़िया कविता है आ. सुशील सरना जी. शीर्षक प्रभावी है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online