Comment
अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बलराम जी . मतले में ईता दोष है गौर कीजिये
लव-लब
यक़ीनन छोड़ दी हम सबने अब शर्मिन्दगी लेकिन,
हया का आँख में थोड़ा सा पानी अब भी क़ायम है।---उला में जब यकीनन कह रहे हैं तो सानी में अब भी कायम है ---क्या विरोधाभास नहीं लग रहा
ये सच है, मिल गई है उसमें अब बारूद की कुछ बू,-----ये सच है मिल गई उसमे है अब बारूद की कुछ बू ---एसा कर लें
मगर घाटी में खु़शबू जाफ़रानी अब भी क़ायम है।----बहुत सुंदर शेर
नीचे के दोनों शेर में तकाबुले रदीफ़ आ रहा है
थोड़े से संशोधनों के पश्चात ग़ज़ल निखर उठेगी
बहुत बहुत बधाई आपको
सुंदर रचना
//ज़मीनें बेच दीं सब, तर्बियत सारी बचा ली है,
हमारे पास पुरखों की निशानी अब भी क़ायम है।//
बहुत अच्छी गज़ल कही है। बधाई। यदि शब्दों के मान्य हिन्दी में लिख दें तो और भी अच्छा होगा।
पुन: बधाई।
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