22 22 22 22 22 2
तू पर उगा, मैं आसमाँ तलाश रहा हूँ
हम रह सकें ऐसा जहाँ तलाश रहा हूँ
ज़र्रों में माहताब का हो अक्स नुमाया
पगडंडियों में कहकशाँ तलाश रहा हूँ
खामोशियाँ देतीं है घुटन सच ही कहा है
मैं इसलिये तो हमज़बाँ तलाश रहा हूँ
जलती हुई बस्ती की गुनहगार हवा अब
थम जाये वहीं,.. वो बयाँ तलाश रहा हूँ
मैं खो चुका हूँ शह’र तेरी भीड़ में ऐसे
हालात ये, कि ज़िस्म ओ जाँ तलाश रहा हूँ
दरिया ए गिला हूँ, कि न बह जाये बज़्म ये
मै आज बह्र-ए- बेकराँ तलाश रहा हूँ
मैं थक चुका हूँ ढूँढ, वो बहिश्त सा जहाँ
तारीख़ में लिक्खा जहाँ, तलाश रहा हूँ
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस भाई , पहले आपकी किताब के सभी पेज की तस्वीर न पोस्ट कर पाने के लिये आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ , जिसके कारण आपको यहाँ आ कर पूरी बात लिखनी पड़ी ।
लेकिन इस बहर मे 112 को 22 लेना जायज़ है या नही इस ओर अभी भी साफ बात नही हुई है , हाँ कहीं इशारा ज़रूर मिल जा रहा है , लेकिन इशारों से चर्चा नतीजे पर नही पहुँच सकता ।
अतः आ. अजय भाई जी का कहना - 112 को 22 नही किया जा सकता अभी तक मंच के ल्लिये अनसुलझा सवाल है , और मेरे लिये भी ।
फिलहाल मै 112 को 22 मानता रहूँगा , हाँ लय की कमी से भी शेर का बे बहर माना जाने वाली बात भी स्वीकार करता हूँ -- जैसा कि आपने साफ साफ कह दिया है । सादर धन्यवाद आपका ।
आदरनीय अजय भाई , अब तक इस मंच मे 22 को 112 , 121 ,211 और 1212 और 2121 को 222 लिया जाता रहा है , मुझे मंच के फैसले का इंतिज़ार है , लय की कमी स्वीकार कर रहा हूँ , इस लिहाज़ से मिसरे बेहबर माने जाते हैं, ये भी स्वीकार कर रहा हूँ , लेकिन 112 =22 लें या नही अभी तय होना है ।
आदरनीय तस्दीक भाई , आपका बहुत शुक्रिया , मै सुधारने का प्रयास करूँगा ।
आदरनीय राम अवध भाई , आपका ह्र्दय से आभार । मेरा उद्देश्य ब सही है कि एक मंच मे एक निअम को मान कर गज़ल कही जाये , देखिये क्या होता है नतीजा ।
२ - अरू़ज के अनुसार ज़िहा़फ लगा कर
जैसा कि हमने देखा इस बह्र को मात्रिक बह्र मानकर ही पूर्ण रूप से परिभाषित किया जा सकता है, परन्तु इस बह्र को अलग-अलग तरह से अरू़ज के अनुसार परिभाषित करने की कोशिश भी की गयी है।
हालाँकि ऐसी कोशिश में सभी पैटर्न को सम्मिलित कर पाना संभव नहीं है फिर भी इसके लिये प्रâांसिस प्रिचेट ने बह्रे मुत़कारिब से एक ऩक्शा तैयार किया है जो इस प्रकार है।
क्रम अर्कान
१- फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
२- फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊलुन
३- फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊलुन फ़ेलुन
४- फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊल फ़ऊलुन
५- फ़ेल फ़ऊलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
६- फ़ेल फ़ऊलुन फ़ेल फ़ऊलुन
७- फ़ेल फ़ऊल फ़ऊल फ़ऊलुन
८- फ़ेल फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ेलुन
इस ऩक्शे के अनुसार मिसरे को दो हिस्से से बनाया जाता है। मिसरे में पहले इन आठ में से कोई अर्कान तथा फिर से इन आठ में से कोई एक अर्कान रख कर बह्र तैयार की जाती है। इस तरह इस मात्रिक बह्र के अधिकतर पैटर्न इस ऩक्शे में समाहित हो जाते हैं, परन्तु यह ऩक्शा इस मात्रिक बह्र को शत-प्रतिशत परिभाषित नहीं कर पाता है। अब भी कुछ पैटर्न छूट जाते हैं क्योंकि मुत़कारिब रुक्न के ़िजहा़फ में वोे पैटर्न बनाए ही नहीं जा सकते हैं। उन अर्कान के लिये हमें अन्य एक रुक्न मुतदारिक से बह्र बनानी पड़ती है।
इस ऩक्शे के अनुसार त़क्तीअ करें तो हमें यह अर्कान प्राप्त होंगे -
उल्टी / हो ग / यीं सब तद / बीरें · कुछ न / दवा ने / काम / किया
२२ / २१ / १२२ / २२ · २१ / १ २२ / २१ / १२
ऩक्शे के अनुसार -
(३) फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊलुन फ़ेलुन और (६) फ़ेल फ़ऊलुन फ़ेल फ़अल
देखा / इस बी / मारी-ए-/ दिल ने · आ़िखर / काम / तमाम / किया
२२ / २२ / २१ / १२२ · २२ / २१ / १२१ / १२
ऩक्शे के अनुसार -
(२) फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊलुन और (४) फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊल फ़अल
यह अनूठी बह्र उर्दू अदब में अरू़ज की अन्य बह्रों के बराबर मान्य है। अक्सर उर्दू के शाइर तथा हिन्दी के कवि इस बह्र को समझने में धोखा खा जाते हैं, क्योंकि वे इसे सामान्य ढंग से त़क्तीअ करते हैं, परन्तु इसे विशेष ढंग से बरता जाता है।
यह टिप्पणी मेरी किताब "ग़ज़ल की बाबत" का अंश है (पृष्ठ संख्या 165 से 171)
इसे यहाँ प्रस्तुत करना इसलिए आवश्यक था क्योकि किताब के एक बहुत छोटे अंश को यहाँ प्रस्तुत किया गया था जिससे भ्रम की स्थिति बन गयी थी
इस बह्र के बारे में विस्तार से दो तरह से समझा जा सकता है
१ - मात्रिक बह्र मान कर
२ - अरू़ज के अनुसार ़िजहा़फ लगा कर
१ - मात्रिक बह्र मान कर
जैसा कि हमने जाना यह वास्तव में यह एक मात्रिक बह्र है तथा मात्रिकता अनुसार इसे आसानी से समझने के लिये इसका स्वीकृत रुक्न २२ है अर्थात् इस बह्र में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनता है जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
हमने यह भी जाना कि इस बह्र की विशेष बात यह है कि इसमें लय के आधार पर किसी भी दो लघु मात्रा अर्थात् ११ को दीर्घ मात्रा अर्थात् २ मात्रा मान लेते हैं, चाहे वह ११ मात्रा समीप हो या दूर।
आइये इसे विस्तार से समझें -
़इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है। इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं।
जैसे-
२११ २२ · २२ २२
११२ २२ · २२ २२
उदाहरण - यहाँ वहाँ की मात्रा १२ १२ होती है, परन्तु इसे २२२ मान लेते हैं।
यहाँ एक ़खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो, यदि लय भंग हो जाये तो ़ग़जल को बेबह्र मानना चाहिये; वहाँ पर ११ को २ नहीं गिनना चाहिए। इससे बचने के लिए लयात्मकता पर ध्यान देना चाहिए।
इस बह्र में कुछ स्थान हैं जहाँ १±१·२ किया जाए तो लय भंग की स्थिति कम से कम होती है और लय तथा सुंदरता भी बनी रहती है।
जैसा कि पहले भी बताया है इस बह्र पर सबसे अधिक मीर त़की मीर साहब ने ़ग़जलें कही है, उनकी ़ग़जल से चंद अश्आर देखें -
उलटी हो गयीं सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आ़िखर काम तमाम किया
किसका ़िकबला कैसा काबा कौन हरम है क्या एहराम
कूचे के उसके बाशिन्दों ने सबको यहीं से सलाम किया
याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़्ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुब्ह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया - मीर त़की मीर
त़क्तीअ
उल्टी / हो गयीं / सब तद / बीरें,/ कुछ न द / वा ने / काम कि / या
२२ / २११ / २२ / २२ / २११ / २२ / २११ / २
देखा / इस बी / मारी-ए-/ दिल ने / आख़िर / काम त / माम कि / या
२२ / २२ / २११ / २२ / २२ / २११ / २११ / २
किसका / ़िकब्ला / कैसा / काबा / कौन ह / रम है / क्या एह /राम
२२ / २२ / २२ / २२ / २११/ २२ / २ २ / २ १
कूचे के / उसके / बाशिन् /दों ने / सबको य / हीं से स / लाम कि / या
२११ / २२ / २२ / २२ / २१ १ / २ ११ / २११ / २
याँ के स / पेद-ओ- / स्याह में / हमको / दख़्ल जो / है सो / इतना / है
२११ / २२ / २११ / २२ / २११ / २२ / २२ / २
रात को / रो-रो / सुब्ह कि/ या, या / दिन को / ज्यों-त्यों / शाम कि / या
२११ / २२ / २११ / २२ / २२ / २२ / २११ / २
सभी मिस्रों के अर्कान का पैटर्न अलग-अलग है, परन्तु सभी लय अनुसार ३० मात्रिक हैं।
२ - अरू़ज के अनुसार ़िजहा़फ लगा कर ....
क्रमशः
़ग़जल शास्त्र में एक मात्र मात्रिक बह्र अरूज़ की बह्रों के साथ अपवाद स्वरूप मान्यता प्राप्त है। यह बह्र ़फारसी बह्र के मूल नियमों पर नहीं वरन् लयात्मकता पर आधारित है तथा कुछ-कुछ हिंदी के मात्रिक छंद की तरह इस्तेमाल होती है। हालाँकि हिन्दी छंद से भी यह पर्याप्त भिन्न है।
़ग़जल का इतिहास बताता है कि यह बह्र सत्रहवीं शताब्दी से देखने को मिलती है, परन्तु इस बह्र पर उस्ताद शाइर मीर त़की मीर ने अठारवीं शताब्दी में सैकड़ों ़ग़जलें कहीं और इस बह्र को उर्दू में प्रचलित किया। यही कारण है कि इसे ‘बह्रे-मीर’ भी कहा जाता है।
अरू़ज में इस मात्रिक बह्र को कुछ लोग मुत़कारिब अर्थात् ़फऊलुन (१२२) तथा कुछ लोग मुतदारिक अर्थात् ़फाइलुन २१२ रुक्न के अनुसार त़क्तीअ करते हैं तथा ़िजहा़फ लगा कर इसके अरर्कान बनाते हैं जिससे अरू़ज में इस बह्र को शामिल किया जा सके।, परन्तु सच्चाई यह है कि इन दोनों रुक्नों में ़िजहा़फ लगा कर रुक्न की जितनी शक्लें बन सकती हैं इस बह्र में उससे कहीं अधिक पैटर्न देखने को मिलते हैं। एक इसी बात से साबित हो जाता है कि यह बह्र अरू़ज के किसी रुक्न से नहीं बन सकती है।
इस बह्र को हिन्दी छंद से प्रेरित बह्र मानने का एक बड़ा कारण और है कि अरू़ज में जिस अर्कान का पालन मत्ला में कर लिया जाये आगे अश्आर में उसी को निभाते हैं तथा इसके अपवाद बहुत कम तथा निश्चित हैं।, परन्तु इस बह्र में जिसे हम बह्रे मीर के नाम से भी जानते हैं ऐसा नहीं होता है। इस बह्र में प्रत्येक मिसरे में अलग अर्कान को प्रयोग किया जा सकता है शर्त केवल यह है कि सभी मिस्रों की मात्रा लय अनुसार एक समान हो।
उदाहरण -
पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बा़ग तो सारा जाने है - मीर त़की मीर
आइये अब इस शे'र की त़क्तीअ करें -
पत्ता / पत्ता / बूटा / बूटा / हाल ह / मारा / जाने / है
२२ / २२ / २२ / २२ / २११ / २२ / २२ / २
जाने न / जाने / गुल ही न / जाने / बा़ग तो / सारा / जाने / है
२११ / २२ / २ ११ / २२ / २११ / २२ / २२ / २
जहाँ मात्रा गिराई गई है वहाँ अन्डरलाइन से इंगित किया गया है।
जब हम इस शे'र की त़क्तीअ देखते हैं तो हम पाते हैं कि दोनों पंक्तियों का मात्रा क्रम अलग-अलग है, परन्तु पढ़ने पर इसकी लयात्मक्ता सही है तथा शे'र बेबह्र नहीं लगता है। यही इस बह्र की ़खास बात है कि इसमें कहीं भी ११ को २ अनुसार पढ़ा जा सकता है। दोनों मिस्रों की मात्रा देखें -
२२ / २२ / २२ / २२ / २११ / २२ / २२ / २
२११ / २२ / २ ११ / २२ / २११ / २२ / २२ / २
इन दोनों अरर्कान को २२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२ के बराबर माना गया है। इसी ़ग़जल में आगे के अश्आर देखें तो मात्रा में और विभिन्नता दिखेगी, परन्तु सभी की लयात्मक मात्रा २२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२ ही है।
आइये इस ़ग़जल के कुछ अन्य अश्आर की त़क्तीअ करें -
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ़िजआँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शह्र-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
आशिक़ / सा तो / सादा / कोई / और न / होगा / दुनिया / में
२२ / २२ / २२ / २२ / २१२ / २२ / २२ / २
जी के ़िज / आँ को / इश्क़ में / उस के / अपना / वारा / जाने / है
२११ / २२ / २११ / २२ / २२ / २२ / २२ / २
चाराग/ री बी /मारी-ए-/ दिल की / रस्म-ए-/ शह्र-ए- / हुस्न न / हीं
२११/ २२ / २११ / २२ / २२ / २२ / २११ / २
वर्ना / दिलबर-ए-/ नादाँ / भी इस / दर्द का / चारा / जाने / है
२२ / २११ / २२ / २२ / २११ / २२ / २२ / २
देखें इन चार मिस्रों में अर्कान का पैटर्न अलग-अलग है, परन्तु सभी मिसरे में अर्कान ३० मात्रिक हैं। अत: इसे अरू़ज की बह्र समझना उचित प्रतीत नहीं होता है।
इस बह्र को हिन्दी मात्रिक छंद के ़करीब तो माना जा सकता है, परन्तु इसे मात्रिक छंद नहीं कहा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि इस बह्र में भी मात्रा गिराने का नियम अरू़ज के अनुसार ही मान्य है, परन्तु छंदशास्त्र में इस तरह मात्रा गिराने का नियम नहीं है। मिसरे के अंत में अतिरिक्त लघु मात्रा लेने का नियम भी पिंगलशास्त्र (छंद शास्त्र) में देखने को नहीं मिलता है।
अस्ल में यह एक एक अनूठी बह्र है जिसे अरू़ज और छंद के नियमों को मिला कर ईजाद किया गया है। इस बह्र में दोनों शास्त्रों से ़खूबियाँ ली गयी हैं। इसीलिये इसे मात्रिक बह्र कहना उचित होगा। प्रसिद्ध उर्दू आलोचक शम्सुर्रहमान ़फारू़की इस अनूठी बह्र को ‘बह्रे मीर’ कहते हैं। यदि इस बह्र को कोई नाम देना हो तो यह नाम ही उचित प्रतीत होता है।
मात्रिक अनुसार इसे आसानी से समझने के लिये इसका स्वीकृत रुक्न २२ है अर्थात् इस बह्र में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनते हैं जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
इस बह्र के बारे में विस्तार से दो तरह से समझा जा सकता है
१ - मात्रिक बह्र मान कर
२ - अरू़ज के अनुसार ़िजहा़फ लगा कर
आ० अनुज , हिन्दी में कविता के दो पक्ष होते है - भाव पक्ष और कला पक्ष
कला पक्ष कमजोर भी हो तो हम भाव पक्ष को ख़ारिज नहीं कर सकते . अरुज की मेरी जानकारी शून्य के बराबर है . हिन्दी का छंद होता तो मैं अवश्य कुछ कहता . पर आपकी गजल में भाव पक्ष इतना उत्कृष्ट है की हर शेर दिल पर चोट करता है . हिन्दी में जायसी के अनेक दोहों और चौपाईयों की मात्राएँ गलत है पर रस अलंकार योजना में वे अद्वितीय है , अतः मेरी नजर मे यह गजल ख़ारिज करने योग्य तो कतई नहीं है , पर अगली गजलों में आप लोगों को आश्वास्त्र करे कि उनके मानकों पर भी आप खरे उतर सकते हैं . यह क्षमता आप में है . सादर .
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपकी ग़ज़ल के माध्यम से जो चर्चा मंच पर छिड़ी है बड़ी ही रोचक है और मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि इस पर एक राय हो जानी चाइये ताकि आगे हम सब अभ्यासी उसी के अनुरूप प्रयास करें ..तकनीकी पक्ष अपनी जगह है ..भाव की दृष्टि से मुझे हर शेर बहुत उम्दा लगा इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
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