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आप से क्या मुहब्बत हुई

आप से क्या मुहब्बत हुई ।
रात भी अब कयामत हुई ।।

जब भी आए तेरे दर पे हम ।।
दुश्मनों की इजाफ़त हुई ।।

हुस्न था आपका कुछ अलग ।
आप ही की हुकूमत हुई ।।

यूँ संवरते गए आप भी ।
हुस्न की जब इनायत हुई ।।

अब चले आइये बज्म में ।
आपकी अब जरूरत हुई ।।

जाइये रूठ कर मत कहीं ।
आपसे कब अदावत हुई ।।

है तकाजा यहां उम्र का ।
आईनों की हिदायत हुई ।।

कुछ अदाएं मचलने लगीं ।
आंख से जब हिमाकत हुई ।।


चल दिये तोड़कर दिल मेरा ।
कौन सी ये शराफ़त हुई ।।

इक नज़र क्या गई आप तक ।
दुश्मनों तक शिकायत हुई ।।

टूटकर हम बिखरते रहे ।
आप से कब रियायत हुई ।।

इश्क़ में जंग कर ली फतह ।
जिंदगी अब रियासत हुई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on November 10, 2017 at 2:22pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शैर में 'इज़ाफ़त'क़ाफ़िया सही नहीं है ।
चौथे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ है ।
आख़री शैर के ऊला मिसरे में 'फतह'ग़लत है,सही शब्द है "फ़त्ह"इसका वज़्न है 21 ।
Comment by Mohammed Arif on November 10, 2017 at 1:58pm
हुस्न था आपका कुछ अलग ।
आप ही की हुकूमत हुई ।। कितना सच है । बहुत ख़ूब!
शे'र दर शे'र के साथ मुबारकबाद आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ।
Comment by Afroz 'sahr' on November 10, 2017 at 1:32pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब अच्छी ग़ज़ल कही आपने इस रचना पर बहुत बधाई आपको,,,,

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