For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पीला माहताब ...

ठहरो न !

बस
इक लम्हा
रुक जाओ

मेरे शानों पे
जरा झुक जाओ

मेरे अहसासों की गठरी को
जरा खोलकर देखो
जज्बातों के ज़जीरों पे
हम दोनों की सांसें
किस क़दर
इक दूसरे में समाई हैं
मेरे नाज़ार जिस्म के
हर मोड़ पर
तुम्हारी पोरों के लम्स
मुझे
तुम्हारे और करीब ले आते हैं
थमती साँसों में भी
मैं तुम्हारी नज़रों की नमी से
नम हुई जाती हूँ
देखो
वो अर्श के माहताब को
हिज़्र में चांदनी के
शायद पीला हो गया है
मगर
मेरे फ़ना होने के बाद भी
तुम्हारी उल्फ़त
तुम्हारे इस माहताब को
कभी
अपने ज़हन में
पीला
न होने देगी

(नाज़ार=कमजोर)

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 4:47pm

आदरणीय सुरेन्दर नाथ सिंह जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 4:47pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब, सादर प्रणाम ... प्रस्तुति के भावों को अपनी मनोहारी प्रतिक्रिया से मान देने का दिल से आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on November 15, 2017 at 1:55pm
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन, हर बार की तरहः बेहद उम्दा सृजन, पढ़ते पढ़ते पाठक खो जाता है, और आँखो के सामने एक बिम्ब बन जाता है आपकी अतुकांत रचनाओं में, हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर
Comment by vijay nikore on November 14, 2017 at 7:04pm

//थमती साँसों में भी 
मैं तुम्हारी नज़रों की नमी से 
नम हुई जाती हूँ //.................  वाह, वाह, वाह!

सदैव समान आपने एक और सुन्दर रचना प्रस्तुत की है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:25pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया एवं सुझाव का दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:25pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:25pm

आदरणीय बृजेश जी सृजन को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on November 13, 2017 at 3:13pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'ज़जीरों' को "जज़ीरों" कर लें ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2017 at 2:50pm

आदरणीय सुशील जी प्रेम की शानदार अभिव्यक्ति करती इस शसक्त रचना पर हार्दिक बधाई सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 12, 2017 at 11:03pm
एक और बेहतरीन कविता आपकी समर्थ लेखनी से आदरणीय हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service