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छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे - सलीम रज़ा रीवा

212 212 212 212

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे
बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 -

चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा 
मेरे महबूब जिस दम संवर जाएँगे

 -
बन संवर के उन्हें आज आने तो दो 
बज़्‍म में सब के चहरे उतर जाएँगे

 -

बंदा परवर अगर आप आएँ इधर
बन के गुल राह में हम  बिखर जाएँगे 

 -

इश्क़ की राह मुश्क़िल बहुत है मगर 

बे - ख़तर दोस्तों हम गुज़र जाएँगे

 -

तूने   छोड़ा अगर साथ मेरा कभी 
हिज्र मे तेरे घुट घुट के मर जाएँगे

 -

याद हमको  भी रख्खेगी दुनिया रज़ा 
काम ऐसा भी इक रोज़ कर जाएँगे

  -

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 7:37pm
आ. विजय जी,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया
Comment by vijay nikore on November 23, 2017 at 11:36am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल। हार्दिक बधाई।

Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 4:54pm
जनाब आरिफ साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया महब्बत सलामत रहे.
Comment by Mohammed Arif on November 21, 2017 at 12:15pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:16am
आ. सुरेंद्र नाथ जी,
ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:14am
जनाबे मुहतरम समर साहिब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया,
आपकी महब्बत के बिना ग़ज़ल अधूरी होती.. अपना प्यार नाचीज़ पर बनाए रखें...
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:11am
आली जनाब तस्दीक अहमद साहिब,
आपकी महब्बत और मशविरे का शुक्रिया यूँ ही महब्बत बनाए रखें,
Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:48pm
तूने छोड़ा अगर साथ मेरा कभी
हिज्र मे तेरे घुट घुट के मर जाएँगे
वऐश वाह,
आद0 सलीम भाई जी मतले से लेकर मकते तक बेह्तरीन ग़ज़ल कही आपने। दिल से हार्दिक बधाई निवेदित है आपको।
Comment by Samar kabeer on November 20, 2017 at 9:10pm
बहुत ख़ूब वाह, इस तब्दीली से ग़ज़ल में निखार आ गया ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 20, 2017 at 9:07pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

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