For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कोई आँचल उड़ान चाहता है

1222 1222 122
तपन को आजमाना चाहता है ।
समंदर सूख जाना चाहता है ।।

तमन्ना वस्ल की लेकर फिजा में।
कोई मुमकिन बहाना चाहता है ।।

जमीं की तिश्नगी को देखकर अब ।
यहाँ बादल ठिकाना चाहता है ।।

तसव्वुर में तेरे मैंने लिखी थी।
ग़ज़ल जो गुनगुनाना चाहता है ।।

मेरी चाहत मिटा दे शौक से तू ।
तुझे सारा ज़माना चाहता है ।।

मेरी फ़ुरक़त पे है बेचैन सा वो ।
मुझे जो भूल जाना चाहता है ।।

चुभा देता है जो ख़ंजर खुशी से ।
वही मरहम लगाना चाहता है ।।

अदब से दूर जाता एक झोंका ।
कोई आँचल उड़ाना चाहता है ।।

दिखा देना हमारे ज़ख्म उसको ।
वो हम पर मुस्कुराना चाहता है ।।

हवा का रुख पलट जाने से पहले ।
वो मेरा घर जलाना चाहता है ।।

अना के साथ वो हुस्नो अदा से ।
नया सिक्का चलाना चाहता है ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 25, 2017 at 12:29am
आ0 सन्तोष ख़िरवादकर साहब तहे दिल से शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 25, 2017 at 12:28am
आ0 बहन रक्षिता सिंह जी सप्रेम आभार ।
Comment by रक्षिता सिंह on November 24, 2017 at 10:43pm
आदरणीय नवीन जी,
बहुत बहुत और बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए तहे दिल से मुबारकबाद.... स्वीकार करें।
Comment by santosh khirwadkar on November 24, 2017 at 4:27pm
कोई आँचल उड़ाना चाहता है.....आदरणीय ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई!!
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2017 at 11:47pm
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2017 at 5:44pm
जनाब नवीन मणि साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 22, 2017 at 3:43pm
आ0 कबीर सर सादर नमन । आपका सुझाव ही तो मेरा पुरष्कार है । आपके सुझाव से तो मेरी ग़ज़ल और निखर के आती है । सादर नमन के साथ सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on November 22, 2017 at 2:40pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'चुभा देता है जो ख़ंजर ख़ुशी से'
इस मिसरे में 'ख़ुशी'शब्द भर्ती का है, इसे बदलने का प्रयास करें,एक सुझाव है,अगर उचित लगे:-
'चुभा देता है ख़ंजर पीठ में जो'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
7 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service