For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कब तक झूलोगी? (नवगीत)//प्राची

झूठ-सत्य के दो पलड़ों पर
टँगी हुई उम्मीदों बोलो-
कब तक झूलोगी ?
अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर
पाने की आवारा ज़िद में-
क्या-क्या भूलोगी ?

शब्दों की प्यासी बन कर तुम
चीख मौन की झुठलाती हो
बोलो आखिर क्यों ?
मनगढ़ मीठी बातें रखकर
खारापन बस तौल रही हो
इतनी शातिर क्यों ?

प्रणय स्वप्न में गढ़ते-गढ़ते
खुशियों की झूठी दस्तक पर
कब तक फूलोगी ?

टूट-टूट कर बिखरी हो तुम
सच-सच कहना पर पत्थर तक
क्या पहुँचे क्रंदन ?
नर्म गुलाबी गरमाइश में
अहसासों की नमी लिये फिर
क्या लौटे स्पंदन ?

प्राणहीन वादों के शव पर
मंगल चिह्न सजाने से क्या-
जीवन छू लोगी ?

चलन समझ कर नये दौर का
सारी परिभाषाएँ बदलो
यही ज़रूरी है,
गहराई  की चाह छोड़ कर 

उथलापन अपनाना सीखो
ये मजबूरी है,

वक़्त खड़ा अट्टाहस करता
पूछ रहा है, किस्मत से क्या
बस आँसू लोगी ?

डॉ० प्राची सिंह
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 423

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 4:44am

आद0 प्राची सिंह जी सादर अभिवादन। बेहतरीन नव गीत लिखा आपने, इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई निवेदित है।सादर

Comment by Ajay Tiwari on December 12, 2017 at 12:43pm

आदरणीया प्राची जी, 

शब्दों का जिस मितव्यता और कौशल से आप ने इस्तेमाल किया उसने इस सुन्दर गीत-प्रस्तुति को अपूर्व काव्य-सैष्ठव प्रदान किया है. हार्दिक बधाईया.

सादर  

 

Comment by Samar kabeer on December 11, 2017 at 2:10pm

मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा आदाब,बहुत सुंदर नवगीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service