उसका बेहद अपनेपन से आना
नज़ाकत से छूना
अपनी सधी हुई उँगलियों से थामना
महसूस करना तपिश को
सुबह शाम जब चाहे...
दूर न रह पाने की
उसकी दीवानगी,
ये चाह कि उसके बिन पुकारे ही
सुन ली जाए उसकी हर उसकी धड़कन,
न न नहीं पसंद उसे अनावश्यक मिठास
न ही कृत्रिमता भरा कोई भी मीठापन
चाहे फीकी हो
पर सहज सादगी ही भाती है उसे...
बिना दो पल भी रुके
उसका लगा लेना अपने लबों से
घुलने देना हर अहसास को
क़तरा क़तरा अपने भीतर,
और डूब जाना इस ताज़गी में,
पलकों से ढाँप लेना
आँखों में उमड़ती तसल्ली को,
फिर लेना सुकून भरी लम्बी साँस...
सच!
बहुत हिफ़ाज़त से सहेजा है उसने
गर्म नाज़ुक एहसासों भरे
चाय और कशिश के इस अटूट साथ को
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत हिफ़ाज़त से सहेजा है उसने
गर्म नाज़ुक एहसासों भरे
चाय और कशिश के इस अटूट साथ को----------------कविता के रहस्य को खोलती ये अंतिम पंक्तियां , साधुवाद आदरणीया
सुंदर रचना
,बहुत सुंदर रचना
आदरणीया प्राची जी इस सहजता से ओतप्रोत इस शानदार रचना केलिए ढेर सारी बधाई सादर
चाय और कशिश .....ये नहीं समझ सका
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