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लोग तन्हाई में जब आप को पाते होंगे।
मेरा मुद्दा भी सलीके से उठाते होंगे ।।
लौट आएगी सबा कोई बहाना लेकर ।
ख्वाहिशें ले के सभी रात बिताते होंगे ।।
सर फ़रोसी की तमन्ना का जुनूं है सर पर ।
देख मक़तल में नए लोग भी आते होंगे ।।
सब्र करता है यहां कौन मुहब्बत में भला।
कुछ लियाकत का असर आप छुपाते होंगे ।।
उम्र भर आप रकीबों को न पहचान सके ।।
गैर कंधो से वे बन्दूक चलाते होंगे ।।
ये हक़ीक़त तो जमाने को खबर है शायद ।।
ख्वाब रातों में उन्हें खूब सताते होंगे ।।
इश्क़ छुपता ही नहीं लाख छुपा कर देखो ।
खूब चर्चे वो सरेआम कराते होंगे ।।
ज़ुल्फ़ लहरा के गुज़रते वो अदाकारी में ।
आग सीने में कई बार लगाते होंगे ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 कबीर सर सादर नमन । आपकी इस्लाह अत्यंत कीमती है । करेक्ट करता हूँ ।
खूब ग़ज़ल कही..
आ0 गुरुदेव कबीर सर सादर नमन के साथ आभार ।
आ0 विजय निकोरे साहब सादर आभार ।
आ0 तेजवीर सिंह जी सप्रेम आभार
आ0 मु0 आरिफ़ साहब बहुत बहुत आभार
आ0 सुरेंद्र नाथ सिंह जी विशेष आभार
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'लौट आएगी सबा कोई बहाना लेकर'
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा :-
"लौटती होगी सबा कोई बहाना लेकर"
'सरफ़रोसी की तमन्ना का जुनूँ है सर पर
सबसे पहली बात 'सरफ़रोसी' नहीं,"सरफ़रोशी",दूसरी बात ये कि सानी मिसरे के कथ्य के हिसाब से ये मिसरा यूँ होना चाहिये :-
'सरफ़रोशी की तमन्ना लिये अपने दिल में'
5वें शैर में कथ्य स्पष्ट नहीं है ।
'ये हक़ीक़त तो ज़माने को ख़बर है शायद'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'हक़ीक़त तो',और कथ्य के हिसाब से भी ये मिसरा यूँ होना चाहिये :-
'इस हक़ीक़त की ज़माने को ख़बर है शायद'
आद0 नवीन मणि जी सादर अभिवादन।बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने। मेरी शैर दर शेर मुबारकबाद क़ुबूल करें।
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