मृत्यु भोज - लघुकथा –
राघव के स्वर्गीय पिताजी का तीसरा संपन्न हुआ था अतः सारे परिवार के सदस्य आगे क्या करना है, इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे।
"क्यों राघव, तेरहवीं का क्या सोचा है? हलवाई बगैरह तय कर दिया या मैं किसी से बात करूं"?
"ताऊजी, आपको तो पता ही है कि पिताजी इन सब पाखंडों के खिलाफ़ थे। और मृत्यु भोज तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसीलिये माँ की मृत्यु पर उन्होंने हवन किया और अनाथालय के बच्चों को भोजन कराया था"।
"देख बेटा, तेरे पिता तो चले गये। उनके रीति रिवाज़ और आदर्श भी उनके साथ चले गये"।
"ताऊजी, साफ साफ बताइये , आप क्या चाहते हैं "?
"बेटा मेरा मतलब तो केवल यह है कि अब समाज में तुम्हें रिश्ते निभाने हैं। तुम्हारे कार्य ही तुम्हें समाज में नाम और इज्जत देंगे। तेरहवीं पर मृत्यु भोज नहीं करोगे तो लोग तरह तरह की बातें करेंगे कि देखो कैसी औलाद है , साधन संपन्न होते हुये भी, बाप की आत्मा की शांति के लिये मृत्यु भोज भी नहीं कराया"।
"ठीक है ताऊजी, जैसी आप लोगों की इच्छा"|
सब लोग जा चुके थे। राघव अभी भी इसी उधेड़्बुन में उलझा हुआ था।
उसकी नज़र सामने पिताजी की मुस्कराती तस्वीर पर पड़ी।
अनायास राघव उसके सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया,"पिताजी, आप ही मुझे राह दिखाइये? मेरी उलझन सुलझाइये? मैं बहुत भ्रमित हूँ। एक तरफ़ आपके उसूल और सिद्धाँत। दूसरी ओर समाज और रिश्तेदारों का दवाब। मुझे क्या करना चाहिये"?
राघव को लगा जैसे पिताजी ने उसके सिर पर हाथ रखा हो,"राघव बेटा, तुम अपने जीवन के मालिक हो। मैंने जो कुछ किया, उसका परिणाम भी मैंने झेला। सब को जवाब दिये। जो मुझे उचित लगा, वही किया। मुझे अपने निर्णयों से शांति मिली। अब तुम अपने फ़ैसले निडर होकर खुद करो। किसी पर आश्रित होने की आवश्यकता नहीं"।
राघव को जवाब मिल चुका था।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,
कुसंस्कार पर अच्छा कुठाराघात । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। अच्छा विषय चुना है आपने। उम्दा लघुकथा पर आपको बधाई। सादर
लघुकथा के के माद्यम से अनादि काल से चला आया कुसंस्कार पर आपने सुन्दर वार किया है आ तेजवीर सिंह जी
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