2122--2122--212
भाग्य तेरे कर्म का परिणाम है
तुझ पे ही निर्भर तेरा अंजाम है
मेरे हमराही को भी ठोकर लगी
मेरे दिल को अब ज़रा आराम है
सिर्फ़ सच की राह पर चलता हूँ मैं
आबला-पाई मेरा इनआ'म है
उसकी मर्ज़ी है अता कुछ भी करे
बस दुआ करना हमारा काम है
शख़्सियत अपनी निखारो मुफ़्त में
मुस्कुराहट का न कोई दाम है
हम फ़क़ीरों की नज़र से देखिये
जिस्म इक मन्दिर है पावन धाम है
हम यथा सम्भव मदद सब की करें
आदमीयत का यही पैग़ाम है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब। ऐन नवाज़िश।
आ. अफ़रोज़ सहर साहब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
दूसरे शेर में क्या स्पष्ट नहीं हो पाया, मैं समझ नहीं सका, सर।
4th शेर में मेरे ख़याल से ऐब नहीं है। 6th शेर आपके कहे अनुसार मैं यक़ीनन कर लेता यदि मेरे शेर में कोई त्रुटि होती आ. ।
गिरह मैंने वाक़ई नहीं पोस्ट की थी। अब कर रहा हूँ, देखियेगा सहर साहब।
इश्क़ करना सीख तू भी ऐ 'दिनेश'
"इससे आगे बस ख़ुदा का नाम है"
सादर।
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा तरही ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आद0 दिनेश जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, शैर दर शैर मुबारकबाद कुबूल करें। आद0 अफ़रोज़ जी के बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर
आदर्णीय दिनेशकुमार जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई
'जिस्म इक मन्दिर है पावन धाम है' इस पंक्ति से मुझे 'बाणभट्ट की आत्मकथा' की याद आई. अपने इस प्रख्यात उपन्यास में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने स्त्री के शरीर को देव मंदिर कहा था.
आदरणीय दिनेश जी, बहुत अच्छे अशआर हुए है. हार्दिक बधाई.
आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब,
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय अफरोज़ सहर जी की इस्लाह का तत्काल प्रभाव से संज्ञान लें ।
आदरणीय दिनेश कुमार जी इस रचना पर बधाई स्वीकार करें।
दुसरे शेर की तरकीब समझ नहीं आई।
चौथे शेर में एब ए शुतर गु़र्बा है।
6 टा शेर यूँ भी हो सकता है
"हम फ़की़रों की नज़र में देखिए"
" दिल तो इक मंदिर है पावन धाम है"
आपने टाईटल में तरही मिसरा कोट किया पर
गिरह नहीं लगाई,,,
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